Thursday, July 28, 2011

उजाले में देखने आदत

उजाले में देखने आदत
ईश मिश्र
छाया अब घटाटोप अँधेरा
उम्मीद है होगा कभी तो बसेरा
रोशनी के कोई गवाह न थे
सभी चश्मदीद हैं इस स्याह रात के
डाल लिया है सबने अँधेरे में देखने की आदत
हैं फिर भी कुछ सिरफिरे करते नहीं कालिमा देवी की इबादत
बढा रहे हैं लहराते हुए हाथ मशालें थामने की बावत
ख़त्म कर देंगे, कहते हैं, अब काले धन की दावत
बढ़ते ही जा रहे लहराते हुए एक हाथ लिए एक में मशाल
होते रहें हाथ कलम , नहीं है रुकने का सवाल
कटेगा एक तो थामेगा मसाल दूसरा हाथ
आयेगा धीरे-धीरे सारा आवाम साथ
हर हाथ में मशालें हैं मिट रहा अँधेरे का नामो-निशान
प्रज्वलित प्रकाश की अब बन रही पहचान
ख़त्म हो रही है अमावस्या के नायकों की आन-बान शान
उजाले में देखने आदत डाल रहा अब नया इन्शान

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