Friday, July 1, 2011

शिक्षक संघ की सदारत २

शिक्षक संघ की सदारत २
मेरे व्यक्तित्व की विडम्बना है की मेरे मित्र और परिजन मुझे आवारा (जो कि मैं हूँ भी और किसी कीमत पर इसे छोड़ नहीं सकता), गैर-जिम्मेदार और गैर-संजीदा छवि प्रचारित करते हैं और मुझे संजीदगी की जिम्मेदारी भी सौंप देते हैं या मैं स्वतः ले लेता हूँ तो कोइ आपत्ति नहीं करता. मेरा अपना मानना है कि गंभीरता के लिए टेंसन सिंह बनना जरूरी नहीं है. कालेज के शिक्षक संघ के अध्यक्ष होने पर जितना आश्चर्य आप सबको है उतना ही मुझे.कुछ साल पहले नंदीग्राम पर एक सम्मलेन में कलकत्ता गया था भोपाल गैस पीड़ितों में काम करने वाला एक दोस्त है सत्तू -- सत्यनाथ सारंगी -- जब मैंने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया हॉस्टल वार्डन का तो उसने सब दोस्तों को बुलाकर कहा, "यह देखो, ईश साला वार्डेन है हॉस्टल का क्या होगा?" और जब कभी आत्म कथा लिखूंगा तो उन तीन सालों का ज़िक्र नोस्टालजिक हो कर करूंगा.

मित्रों! मैं लेनिन के जवाले से अपने छात्रों को कहता हूँ कि जब भी चुनाव न्याय और लोकप्रियता में करना हो तो न्याय के पक्ष में खड़े हो लोकप्रियता बहुत अस्थिर है. और शिक्षक को मिशाल से पढ़ाना होता है. इसी कालेज में १० साल पहले नियुक्ति में हेरा-फेरी के खिलाफ मैं और मेरा एक सहकर्मी डॉक्टर मनिवंनन(अभी वह मद्रास विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर है) भ्हूख हड़ताल पर बैठे थे. एक भी शिक्षक साथ मही आया एक दलाल किस्म का कमीना अध्यक्ष था. सात्क्शात्कार के समय ६००-७०० विद्यार्थी आ गए और इन्तेरविव कैंसिल हो गया. उसी शिक्षक-संघ ने जब लड़ने की जरूरत हुई तो सर्व-सम्मति से मुझे अध्यक्ष चुन लिया. मैं फंस गया अपने एक भाषण के चक्कर में. जो नियमित अध्यक्ष था वह अपनी जातीय अस्मिता को बरकरार रखने के लिए संघर्ष के समय इस्तीफा दे दिया. उसके एक जातीय बंधू ने कहा इस्तीफा देना नैतिक साहस का काम है. मैंने कहा संघर्ष के समय मुखिया का इस्तीफा कायरतापूर्ण पलायन है. अगले दिन अनपेक्षित रूप से मेरा नाम प्रस्तावित कर दिया और मई कायरतापूर्ण पलायन नहीं कर सकता था.
(जारी)

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