सर्वोत्तम जनेवि
ईश मिश्र
एक मंच खुला फेसबुक पर
सर्वोत्तम जनेवि है यहीं पर
छाई नहीं वहां कभी खामोशी
संचालक है हेमंत जोशी
हेमंत जनेवि में आया था तब
इसका नाम भी हम न जानते थे जब
हिंदी में तो ग्वालियर से एम्.ए. करके आया था
जनेवि में फ्रेंच में नाम लिखाया था
पूरे किये उस सेंटर में उसने पांच साल
लेने निकला फिर लिग्विस्टिक का हाल
एम्.ए. से ही नहीं माना उसका दिल
पीएच.डी से पहले उसने किया एम्.फिल.
मिल गयी इसे संचार संस्थान में नौकरी
था वह भी जनेवि परिषर में ही
कितना अहमक है यह हेमंत जोशी
एक ही जगह चार दसक से करवाता ताजपोशी
है एक बार की बात सन सतहत्तर की
नीलगिरी ढाबे पर उसको एक कविता सूना दी
कर दी गलती उसे एक कविता सुनाके
चाय पीते-पीते चले गए हम कावेरी में
चले गए उसके कमरे में था वह बाएं कोने में
निकाला हेमंत ने एक मोटी डायरी
थी जो कविताओं से भरी
आज भी याद है सतहत्तर की वह रात
एक कविता में थी किसी फिल्म में स्ट्रा-बेरी की बात
आगे की बात फिर कभी बताऊंगा
हेमंत के साथ मंच पर जब होऊंगा
बुरी है मेरी फुटनोट की आदत
टिप्पणी थी मंच पर, हो गयी हेमंती इबादत
आइये करते हैं वापस बात अब उस मंच की
पडी जिस पर मनहूस छाया आताताई प्रपच की
हो गया एक सदस्य आत्म-मोह का शिकार
करने लगा मंच के साथ भीषण अत्याचार
दिखाने लगा जबरन निराधार अहंकार
बर्दास्त नहीं हुई कुछ लोगों से उसकी यह ललकार
हो गया अहम् से अहम् का टकराव
मांग उठी अहम् को मंच से निकाला जाय
हेमंत हैं धैर्यवान
करते नहीं अविलम्ब कोई काम
उनने कार्रवाई में देरी किया
कुछ मित्रों ने मंच छोड़ दिया
बनाया एक नया मंच
नहीं होगा जहां अहंकारी प्रपंच
कहेंगे बार-बार
जनेवि से है हमें प्यार
जैसे ही चले मंच को बनाने महान
शुरू हो गया यहाँ भी वही घमासान
यहाँ भी लड़ने लगे वैसे
असली दुनिया में लड़ते हैं जैसे
कुछ नए लोग जुड़े पाने को ज्ञान
देख हमारी हरकतें रह गए हैरान
इसलिए ऐ मित्रों! छोडो यह अहम् का संघर्ष
शुरू करो इस मंच पर एक सार्थक विमर्श
19.07.2011
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