मैंने कभी इम्तहानों में नक़ल नहीं किया क्योंकि मैं अपने से ज्यादा तेज किसी को समझता ही नहीं था.(इसे कृपया आत्म-मोह न समझें). दर-असल बचपन में गाँव में सभी कहा करते थे, "ईश बहुत अच्छा है". सब कहते थे इस लिये मैने भी मान लिया और ज्यादा अच्छा बनने की कोशिश करता था. इसी तरह सभी कहते थे "ईश बहुत तेज है" लेकिन उनकी यह बात मैंने पूरी तरह नहीं माना क्योंकि मेरा गाँव-गिरांव शैक्षणिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ था. सबसे नजदीक मिडिल स्कूल ८ किमी दूर था. १२ साल की उम्र में जब शहर आया तो वहां भी लोग कहने लगे, "ईश इज वैरी इंटेलिजेंट". मैंने भी सोचा सब कह रहे हैं तो होऊंगा ही. नक़ल न करने बचपन की आदत कभी छूटी नहीं.
जहां तक प्रेरणा का सवाल है वह बचपन से अब तक के अनुभव-अध्ययन का संचित प्रभाव होता है. आई.पी.आर. (बौद्धिक संपदा अधिकार) एक धोखा है क्योकि हर पीढी पिछली पीढ़ियों के योगदानों और उपलब्धियों को समेकित(कंसोलिडेट) करता है और आगे बढाता है.
जहां तक प्रेरणा का सवाल है वह बचपन से अब तक के अनुभव-अध्ययन का संचित प्रभाव होता है. आई.पी.आर. (बौद्धिक संपदा अधिकार) एक धोखा है क्योकि हर पीढी पिछली पीढ़ियों के योगदानों और उपलब्धियों को समेकित(कंसोलिडेट) करता है और आगे बढाता है.
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