कहते रहेंगे हम
सुनें-न-सुनें आप
एक-न-एक दिन महसूंसेंगे
इसका गुरुत्व और ताप
बढ़ जाएगा जब चारणों का पाप
खुद-ब-खुद होगा कलम हाथ में
कवि बन जायेंगे आप
निहित है यह खतरा विमर्श में
समझें इसे चाहे तो वरदान या समझें अभिशाप
[ईमि/12.07.2011]
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