नार्वे में धमाका
ईश मिश्र
बहुत दिनों से हो रहे हैं बम के धमाके लगातार
मरते और अपाहिज होते रहे हैं मासूम बार-बार
मुम्बई और कराची के बाद यही खबर अब नार्वे से
मर गए सैकड़ों मासूम बम के धमाके से
हो रही हैं हर रोज मासूम मौतें कहीं-न-कहीं
नार्वे में पहले ऐसा हुआ नहीं
जैसे ही मिली ओस्लो में बम धमाके की खबर
इस्लामी भूत हुआ सवार कार्पोरेटी मीडिया पर
लेकिन नहीं है यह आताताई कोई मुसलमान
है नार्वे का ही नव-नाजी दक्षिणपंथी नौजवान
इतनी ही लाशों इतने में ही नहीं उसका मन भरा
और भी मासूमों को मारने निकल पडा
एक सुदूर द्वीप में, सुंदर से जंगल के बीच में
कर रही थीं देश-काल पर विमर्श कुछ युवा उमंगें
पहुँच गया यह धर्मांध बन्दूक लेकर
मारने लगा सबको एक-एक कर
नार्वे है तो वैसे एक शान्तिपोर्ण देश
रखता है फिर भी अस्त्र-शास्त्र और सेना विशेष
दुनिया पर संकट हो गर लीबिया-अफगानिस्तान में
विलम्ब नहीं करता कभी सेना भेजने में
मरते हैं वहां भी कई गुना निर्दोष हर रोज
कई तो बन जाते हैं सेना की खेल के शिकार की खोज
हो रहे है बम विस्फोट मर रहे हैं निर्दोष रोज ही कही-न-कहीं
गिरते रहे हैं बम अबतक
बगदाद से दिल्ली तक, काबुल से कराची तक
मरते हैं रोज तमाम निर्दोष अमरीका के ड्रोन हमले में
भनक नहीं लगती उसकी कार्पोरेटी मीडिया के अमले में
होते हैं ये बलूच, पख्तून या पुश्तो, जान की है जिनकी कीमत कम
अमरीका या यूरोप में हो ऐसा तो ढा जाता है सितम
गिराते हैं बम अंधाधुंध जब नाटो के विमान
गिरफ्त में आ जाते हैं स्कूल, अस्पताल और रिहायशी मकान
बोलते हैं ओबामा हुई निशाने में ज़रा चूक
जारी रहेगा आतंकवाद पर लेकिन हमला दो-टूक
बनी रहेगी कब तक यह विडम्बना
कब करेगा बंद इंसान निर्दोषों को मारना
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