2002 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के समय युद्धविरोधी प्रदर्शन में हम लोगों ने कुछ नए नारे लगाए थे, उनमें कुछ थे -- तालिबान अभिशाप है, अमरीका उसका बाप है; बिन लादेन अभिशाप है, अमरीका उसका बाप है; जंग चाहता जंगखोर, ताकि राज करे हरामखोर।
दानिश सिद्दीकी की हत्या तालिबानी बर्बरता की ताजी कड़ी है। दरअसल तालिाबान विश्व इतिहास के बर्बरतम संगठनों में है जिसकी स्थापना और पोषण शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका ने किया। अमेरिका ने सोवियत संघ के विरुद्ध इन्हे ढांचागत सुविधाएं दी, प्रशिक्षित किया, हथियार दिए। अलकायदा समेत कई अन्य कट्टरपंथी संगठनों की तरह तालिबान को भी अमरीका (अमरीकी शासक वर्ग) ने एक भयंकर भस्मासुर की तरह तैयार किया तथा उसको खत्म करने के नाम पर अमरीकी आवाम में युद्धोंमाद भर कर अफगानिस्तान को तबाह करने में उनके अरबों डॉलर फूंक दिए। पूरे मुल्क को पूरी तरह तहस-नहस कर उसे उसी तालिबाल के हवाले कर अब अफगानिस्तान से वापसी की नौटंकी कर रहा है। अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों से दोस्ती का नतीजा देखना हो तो एक नजर अफगानिस्तान पर डालना काफी है। वह दिन दूर नहीं जब अमरीका इज्रायल का दानवीकरण कर उसे भी तबाही के रास्ते पर डालकर वापसी की नौटंकी करेगा।
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