यहां प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) क्रांति ही नहीं नवजागरण भी नहीं हुआ। प्राचीनकाल में बुद्ध का आंदोलन उस समय के संदर्भ नवजागरण ही था। आधुनिक काल में, यूरोपीय नवजागरण के पहले कबीर के साथ सामाजिक-आध्यात्मिक समानता के उन्ही सिद्धांतों के साथ शुरू हुआ नवजागरण प्रतिक्रांतिकारी अभियानों और परंपरा के प्रतिरोध के चलते तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका। लेकिन क्रांतियां बेकार नहीं जातीं। 18वीं शताब्दी में प्रबोधन(एनलाइटेनमेंट) क्रांति की आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद औपनिवेशिक हस्तक्षेप नें बौद्धिक क्रांति की संभावनाओं को कुंद कर दिया। पूंजी के गतिविज्ञान के नियमों के अनुसार, मार्क्स का आकलन था कि औपनिवेशिक शासक पूंजी के विस्तार के लिए 'एसियाटिक मोड' (वर्णाश्रमी सामंतवाद) को नष्ट करेंगे, लेकिन वे पूंजीवाद के आदर्श नहीं, विकृत वाहक थे। उन्होंने वर्णाश्रमी सामंतवाद को तोड़ने की बजाय देश के संसाधन लूटने में उसका इस्तेमाल किया। उपनिवेशविरोधी आंदोलन के दौरान आंदोलन के नेतृत्व के वर्चस्वशाली हिस्से ने राजनैतिक आंदोलन में सामाजिक बदलाव के प्रयासों को रोका। प्रबोधन (बुर्जुआ डेमोक्रेटिक) क्रांति का अधूरा एजेंडा कम्युनिस्ट आंदोलन को अपनाना था लेकिन उसने मार्क्सवाद को उपादान के रूप में नहीं मिशाल के रूप में लिया। अब सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के आंदोलनों को क्रमशः चलाने का समय नहीं है। जेएनयू आंदोलन से निकला जय भीम - लाल सलाम - का नारा दोनों आंदोलनों के द्ंद्वात्मक संगम का प्रतीक है। विलंबित नवजागरण किश्तों में हो रहा है और होगा। जैसा कि सीएए विरोधी आंदोलनों ने दिखाया भारत के नए नवजागरण का नेतृत्व स्त्रियां करेंगी तथा स्त्रीवादी प्रज्ञा और दावेदारी इसका अभिन्न अंग होगा। बाकी फिर कभी। यूरोपीय नवजागरण का एक जनतांत्रिक आयाम यह था कि इसने जन्मआधारित सामाजिक विभाजन नष्ट कर दिया था। सामाजिक अभिजात्य के आर्थिक मानदंड निर्धारित किया। सामंती प्रणाली को पूंजीवादी प्रणाली से विस्थापित कर दिया।
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