पहली बात तो दानिश एक फोटो पत्रकार थे। एक पत्रकार की हत्या की निंदा होनी चाहिए वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। हिंदू-मुस्लिम कोई बाद में होता है, पहले हर कोई इंसान होता है। संघ परिवार सांप्रदायिकता विरोध को छद्मधर्मनिरपेक्षता कह कर इसलिए बदनाम करता है कि गैरसांप्रदायिक हिंदू भी ध्रुवीकरण से प्रभावित हों। मुस्लिम लीग और हिंदू सभा को धर्मनिरपेक्षता से नहीं औपनिवेशिक समर्थन से बढ़ावा मिलता था क्योंकि दोनों ही औपनिवेशिक दलाल थे। देश का बंटवारा औपनिवेशिक परियोजना थी जिसे पहले हिंदू महासभा ने प्रस्तावित किया फिर मुस्लिम लीग ने। सारे औऍपनिवेशिक दलालों आरएसएस-हिंदगू महासभा तथा जमाते इस्लामी-मुस्लिम लीग ने देश में सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का ऐसा माहौल बनाया कि कांग्रेस को बंटवारे का औपनिवेशिक प्रस्ताव मानना पड़ा। मेरा मानना है कि कांग्रेस को बंटवारे का प्रस्ताव नहीं मानना चाहिए था, भले ही थोड़ा और रक्तपात होता, भले ही आजादी थोड़ा और देर से मिलती। देशका बंटवारा एक ऐसा जख्म है जो नासूर बन मुल्क का वर्तमान को सूल रहा है और भविष्य पर काले बादल की तरह छाए रहने का खतरा बना हुआ है।
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