कितनों को मारोगे,
कैद करोगे कितनों को?
आवाम अब पढ़ने लगा है
फैज अहमद फैज का संदेश
'सर भी बहुत बाजू भी बहुत'
सुनो नफरत के शहंशाह
मुल्क के विनिवेश के बादशाह!
पुराने जमाने में हुआ था
ऐसा ही अहंकारी, लाशों का व्यापारी
रोम का शहंशाह, कैलीगुला
खुद को अमर और खुदा समझता था
पड़ोसियों पर फौजी ताकत का रौब जमाता था
अपनी बात को देववाणी बताता था
असहमति में जो भी सर उठता
कलम हो जाता था
फुसफुसाहटें कैद कर दी जाती थीं
खुदा था सो अभेद्य सुरक्षा घेरे में रहता था
उसके बारे में पढ़ा है और तुम हो साक्षात
इसलिए मश्किल है कहना निरपेक्षभाव से
क्रूरता और अहंकार में वह उन्नीस था या बीस
सत्ता के मद में वह भूल गया था अपनी ही बात
खुदा होता नहीं बनाया जाता है
'जुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है'
बेरहमी से बध कर दिया था सरे आम
उसी की सुरक्षा कवच ने
टांग दिया था लाश चौराहे पर
जहां लोग उसके अंतिम दर्शन के लिए नहीं
लाश पर थूकने आते थे
वैसे इतिहास कभी खुद को दोहराता नहीं
प्रतिध्वनित होता है
उसी तरह जैसे अतीत पुनः जन्मता नहीं
भविष्य का पुनर्निर्माण होता है।
(यों ही बहुत दिनों बाद कलम आवारा हो गया)
(ईमि: 09.09.2018)
ये दिल ये पागल दिल मेरा लिखने लगा आवारगी :)
ReplyDeleteआज की कविताएं पढ़ गया। बढ़िया व्यंग्य लेकिन इनका व्यापक प3साप कैसे हो? कभीफुर्सत हो तो फोन करें। 9811146846
Deleteप्रसार*
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