शिक्षक दिवस पर
मैंने 1971 में इंटर परीक्षा में यूपी बोर्ड परीक्षा टॉप करने की सोचा, लेकिन फेल हो गया, केमिस्ट्री प्रैक्टकल में। वजह थी प्रैक्टिकल टीचर से अकारण मार खाने से इंकार। मारने के लिए उठी उसकी छड़ी पकड़ ली थी। इवि में बीयस्सी करते हुए उस शिक्षक की मौत की खबर मिली, और खुशी हुई थी। वैसे किसी की भी मौत पर खुश होना, चाहे वह कितना भी बड़ा द्रोणाचार्य क्यों न हो, अमानवीय है। लेकिन 17-18 साल के गांव के लड़के की सामाजिक चेतना का स्तर यह समझने लायक नहीं था। उसका सकारात्मक उपपरिणाम यह हुआ कि बगावत की अंतर्निहित भावनाएं सतह पर आ गयीं। मैं एकआज्ञाकारी बालक से विद्रोही बालक बन गया और समझा कि विद्रोह श्रृजन की आवश्यक शर्त है।
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