लेख हस्त लिखित था, कहीं होगा तो जरूर लेकिन 30 साल बाद खोजना मुश्किल है। राहुल रॉय के पास उसकी फिल्म सुरक्षित होगी। मुझे भी उसकी प्रति रखनी चाहिए थी। किसी को भी प्यार करने का अधिकार है, विवाहित या अविवाहित, लेकिन यह सिद्धांत दोनों पर बराबर लागू होना चाहिए। 'वाजिब' कारणों से नायक के कितने भी संबंध हो जाएं, वह नायक ही बना रहता है, नायिका का बलात्कार भी हो जाए तो उसे ऊंची चोटी से कूदना पड़ता है या किसी 'दरियादिल' पुरुष का नाम लेना। मेरी वोलस्टोनक्राफ्ट ने सही लिखा है (18वीं सदी जब महिला लेखक एक अनजानी बात थी) में कि पति इधर-उधर मुंह मारता है. पत्नी घर में बंद रहने के बावजूद बदले में विवाहेतर संबंधों का जुगाड़ कर लेती है। अब (बीसवीं शताब्दी के स्त्रीवीदी आंदोलनों के बाद) उसे दार्शनिक के रूप में मान्यता मिली, उसके पहले उसकी जिंदगी के बारे में ही बात होती थी।
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