Saturday, September 1, 2018

मार्क्सवाद 150 (जंगखोरी)

Rakesh Tiwari मित्र यही विलेन की धारणा पाकिस्तान में हिंदुस्तानी आर्मी के बारे में स्थापित की गयी है, दोनों तरफ के लोग स्वभावतः जंगखोर नहीं हैं। दोनों ही देशों के लोग अमन चाहते हैं। लेकिन दोनों ही देशों में जंग चाहता जंगखोर ताकि राज करे हरामखोर। ( यह नारा 2002 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हमलोगों ने ईजाद किया था)। दोनों ही देशों में गरीब मजदूर-किसान के बेटे-बेटियां रोजी की तलाश में सेना में भर्ती होते हैं। वह देशभक्ति के लिए नहीं सेना में भर्ती होता/होती, भर्ती होने के बाद वे वर्दी के महिमामंडन तथा प्रशिक्षण में एक अज्ञात दुश्मन के प्रति अदम्य शत्रुता की भावना आत्मसात कर वे जान दांव पर लगाकर देशभक्त बन जाते हैं। बागा बॉर्डर पर दोनों देशों के सुरक्षा सैनिक 'नो मैन लैंड्' में बैठकर साथ साथ बीड़ी पीते हैं और खइनी खाते हैं। दिल्ली और इस्लामाबाद से युद्ध से हालात की घोषणा होगी, दोनों 'दोस्त' 'दुश्मन बन जाएंगे। कई लोग दोनों देशों के संयुक्त युद्धाभ्यास को संघ-भाजपा सरकार की नीतियों में दोगलेपन की मिशाल मान रहे हैं, जो कि सही है। एक तरफ तो ये पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे के फर्जी वीडियो से जेयनयू को देश द्रोह का अड्डा घोषित करते हैं दूसरी तरफ पाक सेना के साथ साझे रियाज के लिए अपनी सेना रूस भेजते हैं। अमेरिकी दबाव में ही सही दोनों देशों के सैनिकों का संयुक्त युद्धाभ्यास (एक अज्ञात साझे दुश्मन के विरुद्ध) तथा साझे गानों की धुनों पर साथ-साथ नाचना गाना (समाजीकरण) इसका एक अनचाहा सकारात्मक पहलू है। दोनों को पता चलेगा कि यह तो मुझसा ही है। उनके दिमागों में एक दूसरे की दानवी छवि टूटेगी। दोनों को एक दूसरे के बारे में लगेगा कि दोनों ही एक जैसे इंसान हैं, जिनके मां-बाप गरीब मजदूर-किसान है। कमेंट अनचाहे लंबा हो गया। जिया की जेलों में काफी वक्त गुजारने वाले हबीब जालिब के शेर से खत्म करता हूं। 'न मेरा घर है खतरे में, न तेरा घर है खतरे में; वतन को कुछ नहीं खतरा निजामे जर को खतरा है'।

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