Mohd Kamil मार्क्स भी पढ़ा है, मैक्स वेबर भी। और निष्कर्ष यही है सारे धर्म फरेब हैं और कमजोरों की लाठी। संघियों-मुसंघियों में इस बात में कोई फर्क नहीं है। धर्म के नाम पर रक्तपात से इतिहास पटा है। सारे रक्तपात राजनैतिक होते हैं., धर्म महज औजार है, चतुर-चालाक लोग धर्म के नशे में चूर धर्मांधियों तो उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। सुकरात, गैलेलीयो, ब्रूनो सारी हत्यायें धर्म के नाम पर धर्म के कमीन ठेकेदारों ने की। मोहम्मजद साहब जिहाद में फूलवर्षा करते थे? लूट में मिले माल और औरतों का क्या करते थे? कर्बला में पैगंबर की विरासत के दावेदार एक दूसरे को फूल-माला चढ़ा रहे थे? 1923, 1933 में गाजे-बाजे और गाय-सूअर के नाम पर देगों में कितने इंसान कत्ल हुए? 1947 में धर्म के नाम पर कितना खून बहा? 1947में अभूतपूर्व जनसंहार के साथ इतिहास का अमानवीय खंडन नास्तिकों ने किया कि कि धर्म की जहालत के ठेकेदारों ने? बाबरी विध्वंस और उसके बाद के दंगों में धर्म का कोई योगदान था? 2002 का गुजरात नरसंहार का तो आपके हिसाब से धर्म से कुछ लेना-देना नहीं? मुजफ्फर-नगर शामली में धार्मिक उंमाद का कोई योगदान नहीं था? राम-रहीम का धर्म-भगवान से कुछ लेना-देना नहीं है क्या? भारत-पाकिस्तान-बांगलादेश में जारी तर्कवादियों की हत्या में धर्म ती कोई भूमिका नहीं है क्या? धर्म के नाम पर उत्पात करने वालों और हैवानियत में क्या फर्क है? आईयस और तालिबानों का धर्म से कुछ लेना-देना है क्या? संघियों-मुसंघियों पर समय खर्च करना समय की बर्बादी है, क्योंकि उनके दिमाग मजहबी जहालत से ओत-प्रोत होते हैं। विदा लीजिए।
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