गोधरा का सच --1
2001 में केशूभाई पटेल की भाजपा सरकार अलोकप्रयता के राह पर थी। नफरत की
बुनियाद पर खड़ा नागपुर का सबसे मजबूत गढ़ ध्वस्त होने के कगार पर था। देश के
प्रति निष्ठा होती और भेजे में दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि तो डूबती चुनावी
नैय्या के लिए कोई सकारात्मक तरीका अपनाते। लेकिन इसने तो एक फासीवादी संगठन के
माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन से उपजी एक आवाम के रूप में भारत की अस्मिता का खंडन
तो आजादी के पहले ही शुरू कर दिया था। खैर जो नहीं है उसका क्या? हिटलर के वैचारिक वारिसों के पास सघन नफरत ही, चुनावी ध्रुवीकरण का एकमात्र रास्ता था। रथयात्राओं से ऩफरत के
महारती, उनके गिरोहियों ने आरयसयस में
दंगा-विशेषज्ञ की छवि अर्जित कर चुके और प्रचारक रह चुके 11वीं पास नरेंद्र मोदी को गुजरात 'संभालने' का उत्तरदायित्व सौंपा, मोदी ने राज्य की बदहाली का ठीकरा पटेल के सिक फोड़ा। जैसा कि
मीडिया विजिल द्वारा जारी टेप में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार में
संसदीय कार्यमंत्री के बयान से स्पष्ट है कि केशूभाई पर लगाए उनके आरोप उन्ही पर
लगने लगे। उनके शासन के पहले छः महीने में भजपा की अलोकप्रियता बढ़ती रही। 3 उपचुनावों में 2 पर भाजपा हारी और
तीसरी पर मुख्यमंत्री होने के बावजूद मोदी बहुत कम मतों से जीते। चंडाल चौकड़ी सत्ता पाने के लिए बेचैन मुल्क की सामासिक संस्कृति
तोड़ने की शातिराना साजिश में लग गयी, जिसे सारे संघी जानते हैं, मानते नहीं।
जारी.......................
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