रंजन मैं तुमसे बिल्कुल सहमत हूं। पहली बात जहां तक नाऊ के घर में बिना खटखटाए किसी के घर में घुसने की बात है तो शहर और गांव में फर्क है। गांव में दरवाजा खटखटाने का रिवाज नहीं था, आवाज लगाने का। मेरे बचपन में सुर्ती ही एक चीज थी जिसमें छुआ-छूत नहीं था। जजमानी व्यवस्था में कहा जाता था कि नाई को सबके घर की हाल मालुम होती है क्योंकि वह सबकी टहल बजाता था। नितीश के पिछले शासनकाल में सासाराम जिले के एक कुर्मी धनी किसान ने दो मजदूरों को इतनी अमानवीय प्रताड़ना दी कि वीडियो देखकर दिल दहल गया था। हमारी रिपोर्ट पर कुछ पटेल क्रांतिकारियों ने कहा था कानून अपना काम कर रहा है। इस तरह की भीड़ हिंसा के मामले में कानून काम करता रहता है। अब वर्गीय ध्रुवीकरण ही क्रांति का रास्ता है।
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