अतीत की व्याख्या ही इतिहास है जिसमें व्यख्याकार के परिप्रेक्ष्य का असर तथ्यों के चुनाव पर पड़ता है, तथ्यविहीनता पर नहीं। सामाजिक विज्ञान में निष्पक्षता छलावा है। हर लेखक के लेखन पर उसकी वैचारिक, निष्ठागत पक्षधरता झलकेगी ही। यह पक्षधरता विवेक और धर्मांधता तथा पूर्वाग्रह के बीच है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र का काल तीसरी शताब्दी ईशापूर्व माना जाता है। कौटिल्य बहुत व्यवस्थित लेखक थे। वे पहले दूसरों के विचार प्रस्तुत करते हैं और लिखते हैं, नेति कौटिल्य। उनकी समीक्षा के बाद अपना मत देते हैं, लिखते हैं, इति कौटिल्य। यदि रामायण, महाभारत, मनुस्मृति कौटिल्य के पहले की या समकालीन रचनाएं होतीं तो वे इनमें वर्णित शासनशिल्प पर विचारों की चर्चा अवश्य करते। अगर ब्रह्मा-विष्णु-महेश नामक देवताओं का अस्तित्व रहा होता तो वे लिखते। देवताओं में वैदिक, प्राकृतिक देवताओं का जिक्र करते हैं। मनुस्मृति का राज धर्म और महाभारत के शांतिपर्व में शासनशिल्प पर विचार लगभग एक दूसरे का कॉपी-पेस्ट है। अशोक के बाद बौद्ध संस्थानों को सरकारी प्रश्रय मिलने से बौद्ध शिक्षा पद्धति का तेजी से प्रसार हुआ। वैदिक धर्म और ज्ञान पर ब्राह्मणीय वर्चस्व का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। छल-कपट से आखिरी मौर्य सम्राट दशरथ की हत्या कर, सत्ता हासिल करने के बाद पुश्यमित्र शुंग ने बौद्धों का बर्बर नरसंहार किया और उनकी संस्थाओं को ध्वस्त किया। उसी के बाद वर्णाश्रमी संस्कृति के वर्चस्व के लिए ये ग्रंथ लिखे गए। एक ही उद्देश्य से लिखे गए बाल्मीकि और तुलसी की कथाओं में देश-काल में फर्क के चलते फर्क है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment