Tuesday, March 3, 2015

होली

पहले तो देता हूं उस कलाकार की दाद
बनाया है जिसने ये अद्भुत कोलाज़
पूरी हो उसकी होलियाने की मुराद
रहे वो चाहे मिर्जापुर में चाहे इलाहाबाद
नहीं अाती मगर समझ में ये बात
पुष्पा की अदृष्य मूंछों का क्या राज
कहां गयीं रेणुयें रमेश अौर सोनकर
मस्त होंगी कहीं सुध-बुध खोकर
ईश मिश्र की मूंछों पर काला बरैकट
सफेदी पर कालिख का आसन्न संकट
निकल जाती ये बात अक्सर दिमाग से
40 साल पहले थे 20 साल के
यौनाओं से करते अाशिकी की बात
पड़े चांद पर चाहे जितने लात
लेते हैं ईश्वर से हमेशा पंगा
भक्त कर देंगें उनको भला चंगा
संजय की मूंछें तो उगते ही तन गयीं
राणाप्रताप की तलवार बन  गयीं
दिखता नहीं वो सदाबहार अाशिक
मारता है कुलाचें लौंडों की माफिक
नाम नहा उसका शशांकशेखर
पड़ा होगा कहीं भांग पाकर
अापूर्ति में अाई बाढ़ अनोखी/
पेंद्र की मूंछें हो गयीं काली चोखी
दिख नहीं रही वाचाल अनुराधा
अाशिकी में गयी होगी बाधा
अरुण दिख रहे अाशिक मायूस
गाफिल ने  लगाया है पीछे जासूस
किसकी है टेढ़ी ये भंगिमा
लगती तो हैं त्रिपाठी प्रतिमा
कहां गयी श्रीवास्तव अारती
अाशिकी जिनकी कुलाचें मारती
बंद करता हूं अब .ये फगुअा
ता हूं सभी को हजारों अाशिकी की दुअा.
 बुरा ही मानो होली है.
(ईमिः 04.03.2015)

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