जनहस्तक्षेपः फासीवादी मंसूबों के खिलाफ एक मुहिम, दिल्ली
आपको
बेदखली के विकास की रणनीति : भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, 2014
के विरुद्ध जनसभा में आमंत्रित करता है
समय: 5.30 बजे संध्याकाल
दिन: बुधवार, 4 माच 2015
स्थानः गांधी शांत प्रतिष्ठान, दीनदयाल
उपाध्याय मार्ग (आईटीओ के पास),
नई दिल्ली
दोस्तों,
मानवता का इतिहास एक भयावह दौर से गुजर रहा है. संकीर्णतावादी,
प्रतिगामी ताकतों की मुखरता आक्रामक होती जा रही है. लोकतांत्रिक
मूल्यों का तेजी से क्षरण हो रहा है. लोकतांत्रिक क्षितिज सिमटता जा रहा है. हाल
के लोकसभा चुनावों में बड़े पूंजी घरानों और कॉरपोरेट मीडिया के उड़नखटोले पर सवार
हो राष्ट्रीय स्वयंसेवक की राजनैतिक शाखा भाजपा ने संसद में स्पष्ट बहुमत हासिल कर
लिया. सत्ता पर काबिज होते ही कॉरपोरेट के मुनाफे में इज़ाफे वाली नीतियों और
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जरूरतों के अनुरूप आर्थिक सुधार की प्रतिबद्धता की दुहाई
देकर कॉरपोरेट द्वारा जनसंपदा की खुली लूट और मजदूरों के अबाध शोषण को सुगम बनाने
के लिये सरकार ने श्रम कानूनों, भूमि सीमा एवं भूमिअधिग्रहण अधिनियमों में
परिवर्तनों की ताबड़तोड़ कवायद शुरू कर दी. तमाम आर्थिक मुद्दों पर वैसे तो शासक
वर्ग की सभी पार्टियों में तो एका है लेकिन कआंतरिक अंतरविरोधों के चलते राज्यसभा
में बहुमत के अभाव में कानून में संशोधन में असमर्थ, अध्यादेशों की झडी लगा दी.
इतने कम समय में इतने अध्यादेश अभूतपूर्व हैं. चुनाव में हजारों करोड़
"निवेश" करनेवाले थैलीशाह लाभ के लिये बेताब हैं. मोदी जी उनको दिये मुनाफेदार
निवेश का वायदा निभाने को प्रतिबद्ध दिखते हैं. अतः मुल्क की नीलामी. जनता से किये
वायदों को, मोदी का जोड़ीदार तथा उनकी सीटियाबाजी में सहायक, क्लीनचिटिया अमित शाह
पहले ही चुनावी शगूफा बता चुका है. ये
अध्यादेश मौजूदा कानूनों के विभिन्न प्रावधानों, खासकर, मजूरों, किसानों,
आदिवासियों तथा अन्य वंचित-उपेक्षित तपकों के पक्षधर प्रावधानों को हटकर या
अप्रभावी बनाकर कॉरपोरेटी लूट को सुगम बना दिया गया है. सबसे खतरनाक अध्यादेश है, भूमि
अधिग्रहण अध्यादेश, 2014. यह अध्यादेश लागू हुआ तो करोड़ों देशवासी
बेदखली, बेघरी, बेरोजगारी के शिकार हो तबाह हो जायेंगे तथा देश की खाद्य सुरक्षा
खतरे में पड़ जायेगी. हमें यकीन है कि
जनता ऐतिहासिक कर्तव्य के रूप में इन जनविरोधी नीतियों का विरोध करेगी और अपने
चरित्र के अनुकूल सरकार पुरजोर दमन.
भूमंडलीय आवारा पूंजी के मौजूदा संकट की जड़ अतिरिक्त पूंजी है जिसे
निवेश के सुरक्षित तथा लाभकारी निवेश के अवसर की तलाश है. हमारे विकासपुरुष प्रधान
मंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’ का निमंत्रण दे दिया. इस पूंजी को निवेश के लाभप्रद ऐसे अवसर की तलाश
है, जिसमें उसे सस्ता कच्चा माल, सस्ता श्रम मुहैय्या हो और एक ऐसी वफादार सरकार
जो राज्य के दमनात्मक मशीनरी से लोगों – किसान, आदिवासी, कारीगर, मजदूर – को उनके
जल-जंगल-जमीन तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल कर, उनपर कॉरपोरेटी मगरमच्छों
को काबिज कर सके. मोदी सरकार उनके लिये अनुकूल परिस्थिति बनाने को कटिबद्ध है.
प्रतिरोध और दमन शुरू हो गया है.
राज्यसभा में बहुमत के अभाव में कॉरपोरेटी सेवा की प्रतिबद्धता के
अपने जनविरोधी मंसूबों को कानूनी जामा पहनाने में नाकाम इस सरकार ने अध्यादेशों का
सहारा लिया है. इस मामले में विकास की इस सरकार ने मध्ययुगीन निरंकुश शासकों को भी
पीछे छोड़ दिया, औपनिवेशिक शासकों भी. गौरतलब है कि अंग्रेज शासकों ने सार्वजनिक
हित के कार्यों के लिये भूमि अधिकरण विधेयक, 1894 बनाया, जो भूमि अधिकरण विधेयक,
2013 समेत बाद के भूमि अधिकरण विधेयकों का आधार बना उसमें भी इस तरह की मनमानी
बेदखली की मनाही थी. यह भी गौर तलब है कि जिस उपरोक्त विधेयक से घबराकर, क़रपोरेटी
दबाव में उक्त अध्यादेश जारी किया गया है, वह भी, कुल मिलाकर किसान-विरोधी तथा
जन-विरोधी ही था, फिर भी किसानों की मनमानी बेदखली से बचाव के भी कुछ प्रावधान थे,
जिन्हें अच्छे दिन की दिशा में प्रगति में बाधक बताकर इस अध्यादेश के जरिये समाप्त
कर दिया गया. राष्ट्रोंमादी, युद्धोंमादी, धर्मोंमादी शगूफों की आड़ में सत्ता पर
काबिज़ रहने का मुगालता पालने वाली मोदी सरकार के अरबपति वित्त मंत्री ने उपरोक्त
विधेयक को देश की सुरक्षा के लिये खतरनाक बताया. जय हो अरुण जेटली की. यह भी गौर
तलब है कि इस विधेयक का मसौदा तैयार लकरने में भाजपा भी शामिल थी, सर्वसम्मति से
संसद में पारित करवाने में भी.
जनहस्तक्षेप की इस छोटी पहल का मक्सद इस तथा अन्य अध्यादेशों पर व्यापक विमर्श के
जरिये इनके विरुद्ध जनमत तथा संगठित संघर्ष की रणनीति की तैयारी की प्रक्रिया की
दिशा में एक छोटी सी शुरुआत है. आपकी भागीदारी महत्वपूर्ण है.
हमारा आमंत्रण स्वीकार कर इस विमर्श के
सहभागी बनें.
ईश मिश्र
संयोजक
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