किसी पोस्ट पर कुछ सामाजिक न्याय के क़रपोरेटी योद्धाओं ने कहा कि मैं ब्राह्मणवाद का विरोधी हूं तो मिश्र क्यों लिखता हूं, मेरे कुछ कमेंटः
मिमि जी, 1 शून्य टाइपिंग की गलती से ज्यादा टाइप हो गया. समझ नहीं पा रहा हूं कि अाप वाकई सर्वज्ञ हैं की जानबूझकर सर्वज्ञता दिखा रहे हैं. थोड़ा दिमाग का इस्तेमाल कीजिये अौर लंपटता को राजनीति समझना बंद कीजिये. वैसे सुकरात ने कहा है कि खुद को सर्वज्ञ समझने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है. मैं मूर्ख नहीं हूं ज्ञानी हो सकता हूं जिसे मूर्खता में अाप मूर्खता समझ बैठे. खैर मुझ अज्ञानी की अाप जैसे सर्वज्ञ क्रांतिकारियों से विमर्श की अौकात नहीं है. मैंने कब कहा कि मायावती-मुलायम ने जातिवाद का अन्वेषण किया. मंडल विरोधी उंमाद के समय मैंने नवभारत टाइम्स में तथाकथित मेरिट के तर्क के विरुद्ध 5 लेख लिखा. था. मैं जातिवादी अमानववीयता के प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं अौर 13 साल की उम्र में जनेऊ तोड़ने के बाद से विरोधी अाप अहिर बने रहने का अधिकार सुरक्षित रखिये, बाम्हन ने इंसान बनने का मेरा हक़ तो मत हरण करने की कोशिस मत कीजिये. जब मेरे पिता मेरा यह अधिकार नहीं छीन पाये तो अाप व्यर्थ प्रयास न करें.
मिमि जी, 1 शून्य टाइपिंग की गलती से ज्यादा टाइप हो गया. समझ नहीं पा रहा हूं कि अाप वाकई सर्वज्ञ हैं की जानबूझकर सर्वज्ञता दिखा रहे हैं. थोड़ा दिमाग का इस्तेमाल कीजिये अौर लंपटता को राजनीति समझना बंद कीजिये. वैसे सुकरात ने कहा है कि खुद को सर्वज्ञ समझने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है. मैं मूर्ख नहीं हूं ज्ञानी हो सकता हूं जिसे मूर्खता में अाप मूर्खता समझ बैठे. खैर मुझ अज्ञानी की अाप जैसे सर्वज्ञ क्रांतिकारियों से विमर्श की अौकात नहीं है. मैंने कब कहा कि मायावती-मुलायम ने जातिवाद का अन्वेषण किया. मंडल विरोधी उंमाद के समय मैंने नवभारत टाइम्स में तथाकथित मेरिट के तर्क के विरुद्ध 5 लेख लिखा. था. मैं जातिवादी अमानववीयता के प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं अौर 13 साल की उम्र में जनेऊ तोड़ने के बाद से विरोधी अाप अहिर बने रहने का अधिकार सुरक्षित रखिये, बाम्हन ने इंसान बनने का मेरा हक़ तो मत हरण करने की कोशिस मत कीजिये. जब मेरे पिता मेरा यह अधिकार नहीं छीन पाये तो अाप व्यर्थ प्रयास न करें.
मिमि जी, जहां तक मेरे नाम के अागे मिश्र लिखने की बात है तो यह सवाल पछने वाले अाप पहले व्यक्ति नहीं हैं. पिछले 40 सालों से, जब से क्रांतिकारी छात्र राजनीति समझना शुरू किया, तथा वर्राणाश्रमी पाखंड का खंडन शुरू किया, राजनैतिक विरोधियों को जब तर्क नहीं मिलते तो यही सवाल दाग देते हैं. यह सवाल वर्णाश्रमी विद्वान अौर सामाजिक न्याय क्रांतिकारी दोनों पूछते रहे हैं. एक इलाबादी वर्णाश्रमी ज्ञानी ने हुक्म दे डाला कि मैं अगर मिश्र लिखता हूं तो वर्णाश्रम का समर्थन करूं. इलाहाबाद विवि की छात्र चेतना का पतन चिंताजनक है. मैं शिक्षक हूं, धैर्य नहीं खोता क्योंकि युवा क्रांतिकारी संभावनाओं को जनवादी वास्तविकता में बदलने का उपक्रम जारी रखूंगा. अाप बहस में मुझे नीचा दिखाने के चक्कर में मेरा लेखन दिमाग ताक पर रख कर पढ़ते हैं. मित्र, दिमाग का इस्तेमाल ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. इस पर 1986 में New Education Policy पर EPW में VEDA- PLOUGH DICHOTOMY शीर्षक से लेख लिखा था. चलिये अाप को भी इस अपराध की संक्षिप्त सफाई दे देता हूँ. मैं कहां पैदा हो गया इसमें न तो मेरा कोई योगदान है न अपराध.इसलिये न इसमें गर्व करने की बात है न शर्म.अापने यदि विष्णु के अवतारों की तरह अपनी कोख का चयन खुद किया हो तो नहीं कह सकता. यह नाम बचपन से है, अखबार वगैरह में विज्ञापन देकर बदला जा सकता है, लेकिन मैंने जरूरत नहीं समझी. मैं बंगलौर के बंगालूरू के बदलाव में विश्वास नहीं करता. यदि मेरी क्रांतिकारिता इतनी अारर है कि नाम में मिश्र लगाने या किसी अहिर से बाम्हन की गाली सुनने से टूट सकती है, तो सीघ्रम्. अाज से 30 साल पहले, मैं घर गया था. मेरी दादी तथा मां को लगा कि मेरी गर्दिश के पीछे मेरी नास्तिकता है. वैसे मैं कभी गर्दिश में रहा ही नहीं 18 साल में मनमर्जी ज़िंदगी जीने के लिये पिता जी से पैसा लेना बंद करने के बाद से. मेरी दादी ने सोचा विंध्यवासिनी के दर्शन से मेरे कष्ट खत्म हो जायेंगे. मेरी दादी ने कहा मैं उन्हें देवी के दर्शन करवा दूं. मैंने एक जीप कर दिया. मेरी दादी ने कहा, "तू ले चलबा तब्बै चलब", मैं लेकर गया यह सोचकर कि यदि मेरी नास्तिकता इतनी अारर है कि एक पत्थर की मूर्ति के दर्शन से टूट जाय तो शीघ्रम्.
पुष्पा यादव I cant dare to enter into a discourse with an original philosopher like you, theorizing a new concept of Brahmocommunism. Develop it. It might get recommended for Nobel. Though it does not seem that readings interest you as hearsay knowledge and may be coaching notes, yet if you can take the pain of reading a pamphlet -- "Communist Manifesto" by Marx and Engels -- and 2 pages Theses on Feurbach by Marx and 4 pages THE PREFACE of the "A Contribution to the Critique of Political Economy" to develop your grand thesis. Available on net. Bye
`मैंने कहा अहिर से इंसान बनने की उतनी ही जरूरत है जितनी बाम्हन से. जो पढ़-लिख कर जीववौज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से उठ न सके वह जाहिल है चाहे बाम्हन हो या अहिर. मुझे अपने 1 विद्यार्थी को कहना पड़ा था, ",तुम मेरे शिक्षण जीवन की इकलौती असफलता हो,मैं तुम्हे बाभन से इंसान न बना सका".आपको अहिर से इंसान बनाने की उम्मीद अभी नहीं छोड़ी है. इसी लिये जरूरी काम छोड़ लगा हूं. मित्र, मैं कभी भागता नहीं क्योंकि 46 किलो का अादमी हूं न भूत से डरता हूं न भगवान से न ही गुंडों से. तमाम मोदी-मुलायम-मायावती-सोन्या भक्तों अौर सामाजिक न्याय के प्रतिक्रांतिकारी कोरपोरेटी दलालों की बाम्हन की गालियों के बावजूद नाम इसलिये भी नहीं बदलता ताकि सनद रहे कि जिन धूर्तों ने हजारों साल समाज के बौद्धिक-अार्थिक विकास में हजारों सालों की जड़ता के जाल मेैं जकड़े रखा, उनमें मेरे भी पूर्वज थे. शुभ रात्रि.
मिमि जी, 1 शून्य टाइपिंग की गलती से ज्यादा टाइप हो गया. समझ नहीं पा रहा हूं कि अाप वाकई सर्वज्ञ हैं की जानबूझकर सर्वज्ञता दिखा रहे हैं. थोड़ा दिमाग का इस्तेमाल कीजिये अौर लंपटता को राजनीति समझना बंद कीजिये. वैसे सुकरात ने कहा है कि खुद को सर्वज्ञ समझने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है. मैं मूर्ख नहीं हूं ज्ञानी हो सकता हूं जिसे मूर्खता में अाप मूर्खता समझ बैठे. खैर मुझ अज्ञानी की अाप जैसे सर्वज्ञ क्रांतिकारियों से विमर्श की अौकात नहीं है. मैंने कब कहा कि मायावती-मुलायम ने जातिवाद का अन्वेषण किया. मंडल विरोधी उंमाद के समय मैंने नवभारत टाइम्स में तथाकथित मेरिट के तर्क के विरुद्ध 5 लेख लिखा. था. मैं जातिवादी अमानववीयता के प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं अौर 13 साल की उम्र में जनेऊ तोड़ने के बाद से विरोधी अाप अहिर बने रहने का अधिकार सुरक्षित रखिये, बाम्हन ने इंसान बनने का मेरा हक़ तो मत हरण करने की कोशिस मत कीजिये. जब मेरे पिता मेरा यह अधिकार नहीं छीन पाये तो अाप व्यर्थ प्रयास न करें.
मिमि जी, 1 शून्य टाइपिंग की गलती से ज्यादा टाइप हो गया. समझ नहीं पा रहा हूं कि अाप वाकई सर्वज्ञ हैं की जानबूझकर सर्वज्ञता दिखा रहे हैं. थोड़ा दिमाग का इस्तेमाल कीजिये अौर लंपटता को राजनीति समझना बंद कीजिये. वैसे सुकरात ने कहा है कि खुद को सर्वज्ञ समझने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है. मैं मूर्ख नहीं हूं ज्ञानी हो सकता हूं जिसे मूर्खता में अाप मूर्खता समझ बैठे. खैर मुझ अज्ञानी की अाप जैसे सर्वज्ञ क्रांतिकारियों से विमर्श की अौकात नहीं है. मैंने कब कहा कि मायावती-मुलायम ने जातिवाद का अन्वेषण किया. मंडल विरोधी उंमाद के समय मैंने नवभारत टाइम्स में तथाकथित मेरिट के तर्क के विरुद्ध 5 लेख लिखा. था. मैं जातिवादी अमानववीयता के प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं अौर 13 साल की उम्र में जनेऊ तोड़ने के बाद से विरोधी अाप अहिर बने रहने का अधिकार सुरक्षित रखिये, बाम्हन ने इंसान बनने का मेरा हक़ तो मत हरण करने की कोशिस मत कीजिये. जब मेरे पिता मेरा यह अधिकार नहीं छीन पाये तो अाप व्यर्थ प्रयास न करें.
मिमि जी, जहां तक मेरे नाम के अागे मिश्र लिखने की बात है तो यह सवाल पछने वाले अाप पहले व्यक्ति नहीं हैं. पिछले 40 सालों से, जब से क्रांतिकारी छात्र राजनीति समझना शुरू किया, तथा वर्राणाश्रमी पाखंड का खंडन शुरू किया, राजनैतिक विरोधियों को जब तर्क नहीं मिलते तो यही सवाल दाग देते हैं. यह सवाल वर्णाश्रमी विद्वान अौर सामाजिक न्याय क्रांतिकारी दोनों पूछते रहे हैं. एक इलाबादी वर्णाश्रमी ज्ञानी ने हुक्म दे डाला कि मैं अगर मिश्र लिखता हूं तो वर्णाश्रम का समर्थन करूं. इलाहाबाद विवि की छात्र चेतना का पतन चिंताजनक है. मैं शिक्षक हूं, धैर्य नहीं खोता क्योंकि युवा क्रांतिकारी संभावनाओं को जनवादी वास्तविकता में बदलने का उपक्रम जारी रखूंगा. अाप बहस में मुझे नीचा दिखाने के चक्कर में मेरा लेखन दिमाग ताक पर रख कर पढ़ते हैं. मित्र, दिमाग का इस्तेमाल ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. इस पर 1986 में New Education Policy पर EPW में VEDA- PLOUGH DICHOTOMY शीर्षक से लेख लिखा था. चलिये अाप को भी इस अपराध की संक्षिप्त सफाई दे देता हूँ. मैं कहां पैदा हो गया इसमें न तो मेरा कोई योगदान है न अपराध.इसलिये न इसमें गर्व करने की बात है न शर्म.अापने यदि विष्णु के अवतारों की तरह अपनी कोख का चयन खुद किया हो तो नहीं कह सकता. यह नाम बचपन से है, अखबार वगैरह में विज्ञापन देकर बदला जा सकता है, लेकिन मैंने जरूरत नहीं समझी. मैं बंगलौर के बंगालूरू के बदलाव में विश्वास नहीं करता. यदि मेरी क्रांतिकारिता इतनी अारर है कि नाम में मिश्र लगाने या किसी अहिर से बाम्हन की गाली सुनने से टूट सकती है, तो सीघ्रम्. अाज से 30 साल पहले, मैं घर गया था. मेरी दादी तथा मां को लगा कि मेरी गर्दिश के पीछे मेरी नास्तिकता है. वैसे मैं कभी गर्दिश में रहा ही नहीं 18 साल में मनमर्जी ज़िंदगी जीने के लिये पिता जी से पैसा लेना बंद करने के बाद से. मेरी दादी ने सोचा विंध्यवासिनी के दर्शन से मेरे कष्ट खत्म हो जायेंगे. मेरी दादी ने कहा मैं उन्हें देवी के दर्शन करवा दूं. मैंने एक जीप कर दिया. मेरी दादी ने कहा, "तू ले चलबा तब्बै चलब", मैं लेकर गया यह सोचकर कि यदि मेरी नास्तिकता इतनी अारर है कि एक पत्थर की मूर्ति के दर्शन से टूट जाय तो शीघ्रम्.
पुष्पा यादव I cant dare to enter into a discourse with an original philosopher like you, theorizing a new concept of Brahmocommunism. Develop it. It might get recommended for Nobel. Though it does not seem that readings interest you as hearsay knowledge and may be coaching notes, yet if you can take the pain of reading a pamphlet -- "Communist Manifesto" by Marx and Engels -- and 2 pages Theses on Feurbach by Marx and 4 pages THE PREFACE of the "A Contribution to the Critique of Political Economy" to develop your grand thesis. Available on net. Bye
`मैंने कहा अहिर से इंसान बनने की उतनी ही जरूरत है जितनी बाम्हन से. जो पढ़-लिख कर जीववौज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से उठ न सके वह जाहिल है चाहे बाम्हन हो या अहिर. मुझे अपने 1 विद्यार्थी को कहना पड़ा था, ",तुम मेरे शिक्षण जीवन की इकलौती असफलता हो,मैं तुम्हे बाभन से इंसान न बना सका".आपको अहिर से इंसान बनाने की उम्मीद अभी नहीं छोड़ी है. इसी लिये जरूरी काम छोड़ लगा हूं. मित्र, मैं कभी भागता नहीं क्योंकि 46 किलो का अादमी हूं न भूत से डरता हूं न भगवान से न ही गुंडों से. तमाम मोदी-मुलायम-मायावती-सोन्या भक्तों अौर सामाजिक न्याय के प्रतिक्रांतिकारी कोरपोरेटी दलालों की बाम्हन की गालियों के बावजूद नाम इसलिये भी नहीं बदलता ताकि सनद रहे कि जिन धूर्तों ने हजारों साल समाज के बौद्धिक-अार्थिक विकास में हजारों सालों की जड़ता के जाल मेैं जकड़े रखा, उनमें मेरे भी पूर्वज थे. शुभ रात्रि.
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