Dilip C Mandal साथी, सही कह रहे हैं अाप. जन्म की अस्मिता के अाधार पर चरित्र-चित्रण प्रकारांतर से ब्राह्मणवाद की ही पुष्टि करता है. योगेंद्र जेयनयू के CPS में मेरे जूनियर (उम्र अौर विश्वविद्यालय में प्रवेश तिथ के लिहाज से) सहपाठी अौर मतभिन्नता के साथ वहां की छात्र राजनीति में राजनैतिक सहयात्री थे. जेयनयू के बाद संयोग से 2-3 मुलाकातें हुई होंगी. 21वीं सदी में हम शायद ही मिलें हों. लेकिन, मेरी समझ से योगेंद्र जन्म की जातीय पहचान से जेयनयू में ही उबर चुके थे. योगेंद्र से समाज तथा इतिहास की राजनैतिक समझ की अामूल असहमतियों के बावजूद उनकी निष्ठा अौर ईमानदारी पर संदेह नहीं करता. प्रशांत लंबे समय से मानवाधिकार के संघर्षों में सहयात्री हैं. उनके अन्नाअौर बाद में केजरीवाल के साथ जाने पर अाश्चर्य हुअा था, वैसे ही जैसे क्रांतिकारी कवि बल्ली सिंह चीमा के जाने पर हुअा था. अानंद कुमार योगेंद्र, अजीत झा के उधर जाने पर इसलिये अाश्चर्य नहीं हुअा कि लोहियावादियों विकल्प की तलाश में शासक वर्ग की विभिन्न ताकतों से समझौते का पुराना इतिहास है. अानंद भाई का नाम इमरजेंसी के पहले सुना था जब इलाहाबाद विवि में पढ़ता था. वे बीयचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे. 1977 में जब जेयनयू में मिले तो एक गंभीर अौर खुशमिजाज भले इंसान लगे. अजीत भी जेयनयू के सहपाठी रहे हैं, सहज, सरल अौर सहज एक लोहिया-गांधीवादी मित्र है अौर बहुत लोकप्रिय शिक्षक. इन लोगों के साथ राजनैतिक समझ अौर शौक्षणिक संस्थापनाओं में मूलभूत असहमति के बावजूद हममें पारस्परिक सम्मान के संबंध रहे हैं, क्योंकि कोई अंतिम सत्य नहीं होता, बस नीयत साफ होनी चाहिये. वैसे भी क़रपोरेटी फासीवाद के हमले से बचने-लड़ने के लिये हर प्रकार की जनतांत्रिक ताकतों के व्यापक गठबंधन की अावश्यकता है. इनका केजरीवाल ऐंड सिसोदिया कंपनी से जो भी मतभेद रहे हों, इन्होनें जितना भी पार्टी विरोधी काम किया हो, इन्हें जिस तरह निकाला गया अौर निजी गुंडों-बाउंसरों का इस्तेमाल किया गया वह निश्चित रूप से सर्वथा निंदनीय बजरंगी मार्का फ़ासीवादी लंपटता है. दर-असल मोदी की ही तरह केजरीवाल भी सत्ता पाने की मैक्यावली की सलाहें पढ़ लिया लेकिन सत्ता पाने के बाद के शासनशिल्प के परामर्श पढ़ना मुनासिब नहीं समझा, इसी लिये दोनों का ही अवशान अवश्यंभावी है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment