सलामती-ए-ज़मीर
मंजिलें और भी
हैं मंजिल-ए-खुदी के सिवा
सलामती-ए-ज़मीर
खुद एक मुकम्मल मंजिल है
दिल की तसल्ली ही
नहीं
उसूलों का उद्गम
भी है ज़मीर की सलामती
लगा देती है
प्रवेश-निषेध की तख्ती अवांछनीय रास्तों पर
ज़िंदगी का होता
नहीं कोइ जीवनेतर मकसद
ज़िंदगी-ए-ज़मीर
खुद-ब-खुद एक मकसद है
तय होती हैं
मंजिलें सफ़र के अनचाहे परिणामों की तरह
हर पड़ाव है एक
मंजिल ऐसे सफ़र की
कोई अंतिम मंजिल
नहीं होती मौत के सिवा.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
जो जीते हैं ज़मीर
बेचकर
रहते हैं
वहम-ओ-गुमान में
सलामत है ज़मीर
जिनकी
बनाते हैं
कारवानेजूनून.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
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