शशांक, इस लडकी की बातों का बुरा मत मानना, यह टेढ़ी-मेढ़ी सई के किनारे की टेढ़े-मेढ़े दिमाग वाली पागल लडकी है, दिल आ गया तो उम्दा बोल देगी नहीं तो बखिया बिखेर देगी. यहाँ इसके और राज़ खोलकर अपनी सामत नहीं बुलाऊंगा. इस कविता में कवि वियोग में लिखी प्रेम-कविता को राजनैतिक रंग देने की साज़िश रचता है, जिसके लिए राष्ट्र-हित में उसका एन्काउन्टर भी हो सकता है. गुजरात को मोदी का बताकर "विकास पुरुष" पर छींटाकशी का भी मामला बनता है. एक प्रेमिका अपने पुराने प्रेमी से कहती है कि उसके दिए सारे ज़ख्मों को वह भूल जाए और नए हालात में नए सिरे से रिश्ते शुरू करे . प्रेमी को आभासी और वास्तविक दुनिया में मोदी भक्तों की २००२ को भूलने की नसीहतें याद आ जाती हैं और वह तुलना करने की गुस्ताखी कर बैठता है. आमीन.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment