चलो ! मिलते
हैं फिर एक बार
ऐसे जैसे मिल रहे हों पहली बार
यहाँ नहीं.
कहीं और
जहां तुम मुझे
सुन सको
और मैं पहचान
सकूं तुम्हारी आवाज़
आओ चलें किसी
अनजाने द्वीप पर
यहाँ न तुम सुन
पाती मुझे
और मुझे सुनाई
देती है
तुम्हारी बातों
में अनकही बातें
प्रतिध्वनियों से दम घुटता है
आओ मिलते हैं फिर
से
ऐसे जैसे पहले
मिले ही नहीं
लेकिन कहीं और
और
अजनबी बनकर
आपरिचित चेहरों
के साथ
खोजें एक दूजे
को
आँख बंद कर
टटोलते हुए
पुकारें अनकहे
अनसुने शब्दों में
शुरू करें नया संवाद
समझ सकें हम
जिससे
पारस्परिक
अस्मिताएं
उनकी
सम्पूर्णता में
अंशों में
नहीं
आओ मिलते है
लेकिन कहीं और यहाँ
नहीं
क्योंकि मिलने की जरूरत है
संभव है मिलने
से
उन बातों पर हो
सके बात
जिन्हें नहीं
होना चाहिए था
और एक नई धूप
की रोशनी में
हो सकता है हम
झाँक सकें
एक
दूसरे की दुनिया में
मुक्त कर सकें जहां
अपने अंश नहीं
सम्पूर्ण अस्तित्व
और सत्यापित कर सकें
साश्वत परिवर्तनशीलता का सिद्धांत
आओ मिलते हैं
यहाँ नहीं, कहीं और
किसी नए द्वीप
में जहां न हों दीवारें
और न सुनाई दे
प्रतिध्वनियां
संवाद के गढे जा सकें नए स्वर
अनकहे अनसुने
अनक्षर अनश्वर
आओ मिलते हैं
लेकिन कहीं और.
यहाँ नहीं.
[ईमि/०७.०७.२००७]
behad khoobsurat.....
ReplyDeletethanks
DeleteLovely
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletev good
ReplyDeleteThanks
Deleteek acchi kavita ke liye badhai par behtar ho milo to yeh bhi vichar rahe
ReplyDeleteतुम्हारे बालों में कुछ हंस उतर आये हैं उत्तर दिशा के
मेरे बालों के बीच उगी वीरानी को मोतियों से भर दो
आओ आज पढ़ें चेहरों पर उग आईं
अजानी लिपि में लिखी उम्र की इबारतें
ashok pandey
tatha
दुनिया के इस मेले में देखो तो
एक दोस्त कहीं कम पड़ जाता है
एक छोटी-सी बात कहने के लिए
कई बार एक कागज कम पड़ जाता है
एक कविता कम पड़ जाती है।
परिणीता
sundar
ReplyDeleteLakshya
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