नहीं मित्र, हम-आप जैसे लोग न तो मौकापरस्त हैं न निकम्मे. पूंजीवाद में एलीनेटेड श्रम की अभिशप्तता तथा इतिहास की तेज रफ़्तार और शासक-वर्गों की वैचारिक पैंतरेबाजी के सही आंकलन की कमी एवं विक्सित पूंजीवादी देशों में वर्ग-चेतना की दयनीय दशा के जतल मकडजाल के चलते हम अभी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, मैं तो अनंत आशावादी हूँ और पोरी उम्मीद है की स्थितियां तेजी से बदलेंगी और यह मकडजाल भस्म हो जाएगा. जनवाद के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है, विशाल मध्यवर्ग. पूंजीवाद एक दोगली व्यवस्था है यह जो कहता है कभी नहें करता और जो करता है कभी नहीं कहता. यह चतुराई से अपनी कुछ privileges जो पहले सिर्फ शासकवर्गों को उपलब्ध थी उनमें से कुछ सुविधाएं यह मध्य वर्ग के साथ शेयर करता है और शिक्षित नटों-भांटों की एक बड़ी जमात खड़ा करता है जो जनवादी चेतना के प्रसार में सबसे बड़ा बाधक है.
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