पूंजीवादी चीन या विघटित सोवियत संघ मार्क्सवाद नहीं हैं. मार्क्सवाद समाज और इतिहास की गति और उसके नियमों को समझने का तथ्यों-तर्कों पर आधारित विज्ञान है जो सत्यापित को ही सत्य मानता है. रूसी-चीनी क्रांतियाँ नन्वादी अभियान के पड़ाव थे, मंजिल नहीं. वैसे यहाँ बहस का मुद्दा यहाँ मार्क्सवाद नहीं बल्कि वाल्मीकि रामायण है. यह मार्क्सवाद का आतंक है कि बहस का मुद्दा कुछ भे हो लोगों के सर पर मार्क्सवाद का भूत सवार हो जता है. मार्क्सवाद पर हम अलग से बहस कर सकते हैं. वैसे तमाम लोग मार्क्सवाद का म पढ़े बिना फत्वानुमा वक्तव्य देते रहते हैं. १७-१८ साल की उम्र में जब मैं और रामाधीन भाई साथ साथ संघी छात्र राजनीति करते थे तो मैं भी अपने पूर्वाग्रहों आधार पर मार्क्सवाद को खूब गालियाँ देता था. विद्यार्थी परिषद् के कार्यालय के नीचे पीपीएच की दूकान थी वहां उठते-बैठते-पढते दुनिया की समझ का फलक विस्तृत होने लगा. रामाधीन भाई साहब बाकी संघियों की तरह प्रेक्टिकल राजनीति में इतने व्यस्त रहे कि समझ बदलने का मौका ही नहीं मिला होगा.
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