Sunday, November 18, 2012

मुक्ति का सपना


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  • Arvind Kumar Ishji Nafarat ek Zahar hai aur zahar toh zahar hota hai.
  • Ish Mishra Arvind Kumar बिकुल सही फरमा रहे हैं. इसी लिये तो हम एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हैं जिसमें नफरत और जंग की गुंजाइशें खत्म हो जाए; इंसान द्वारा इंसान के शोषण-दमन का सिलसिला नामुमकिन हो जाए; सभी स्वतंत्र हों किसी पर किसी किस्म का वर्चस्व न हो; कोई भी आवाम फौजी बूटों तले कुचला न जाए. ........ मुक्ति के सपने देखने वाले हमारे वैचारिक पूर्वजों और हमारे संघर्षों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि गुलामी के निजाम का. प्राचीन काल में यह नया निजाम शुरू हुआ विशुद्ध बाहुबल के आधार पर, अरस्तू ने वुद्धिविहीनता का कुतर्क गढा. उन वुद्धिविहीन लोगों ने लगबघ बिना औज़ार के प्रिज्म/मीनार/नाहर जैसे कर्श्में किये. स्पार्टकस के नेतृत्व की लड़ाई मुक्ति का जंग था और सीजर का जंग गुलामी का. यदि बाहुबल से गुलामी थोपी जाती है तो बाहुबल से बेड़ियाँ तोडना जायज है और टूटना ही चाहिए. बाहुबल के संसाधनों पर एकाधिकार के चलते उस आदिविद्रोह को तो कुचल दिया गया और शहीद मुक्ति-सेनानियों के कटे सर सड़कों के किनारे पेड़ों पर लटका दिए गए थे. लेकिन स्पार्टकस के आदिविद्रोही ने गुलामी के निजाम की चूलें हिला दी और बाहुबल से ककड़ी बेड़ियाँ टूटकर बिखर गयीं और तारीख में नया दौर शुरू हुआ बिना जंजीरों की गुलामी-सामंती गुलामी का दौर. इसमें धरती पर अधिकार को आधार बनाया गया. हर दौर का खात्मा अवश्यम्भावी है. सामंतवाद भी अपने ही बोझ तले दब गया. हिन्दुस्तान में वर्णाश्रमी सामंतवाद आख़िरी साँसें गिन रहा है. नए दौर में उत्पादन के सारे साधनों-संसाधनों पर चंद शर्मायेदारों का कब्जा हो गया और श्रमिक श्रम के साधनों से "मुक्त" होकर मुक्त श्रमिक बन गये. वे दो अर्थों में आज़ाद हैं, श्रम बेचने और भूख से मारने के.सारे जंगखोर शर्माए की रखैलें हैं. फिलीस्तीनी आवाम का संघर्ष जीने के अधिकार के लिये हैं और इजरायली जंगखोरी ने जीने देने के अधिकार के लिये. इजरायल के साथ अमेरिका है औए इसीलिये भय से फिलिस्तीन का साथी कोई नहीं. आइये हम सब मिलकर ऐसी दुनिया के सपने देखें जहाँ नफ़रत, जंग, और जनसंहार के नाम-ओ-निशाँ न हों.

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