क्यों उदास हैं चकित हिरनी सी आँखें आज
क्यों छाया है चंचल चेहरे पर व्यथा का राज
तोड़ा है किसी ने क्या खुशनुमा जज्बात?
या साल रहा है आक्रामक शरर्माए का आगाज?
न तोड़ा है किसी ने दिल न खेला है जज्बात से
बेचैन हैं आँखे दिनोमानी बारला के कारावास से
फौजी बूटों से मुक्ति के वास्ते शर्मीला के उपवास से
शिक्षिका सोनी सोरी को मिल रहे घृणित संत्रास से
है इन आँखों में तकलीफ का एक उमडता समंदर
छिपा है इस दुनिया को बदलने का जज्बा इसके अंदर
नहीं बर्दाश्त इसे ऐसा कोई भी सिकंदरी पोरबन्दर
राज करें जिस पर अंधे-बहरे-गूंगे बन्दर
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