चंचल जी ने एक पोस्ट डाला था जार्ज और ठाकरे की निजी घनिष्ठता और राजनैतिक भिन्नता पर, उस पर मेरे कमेंट्स:
जार्ज के अंदर साम्प्रदायिक अवसरवादिता पुरानी है जो अटल के मंत्रिमंडल में मलाईदार मंत्रालय के लिये आरएसएस की गोद में बैठकर मुखरित हुई. ठाकरे जैसे जन्-द्रोही और युद्धोन्मादी साम्प्रदायिक आतातायी की मौत का मातम उसके वैचारिक मानसपुत्र ही मनाये, जैसे रणवीर सेना के मुखिया के मातम में उस अपराधी के मानस पुत्रों ने कोहराम मचा दिया था.
चंचल भाई मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ क्योंकि आप मेरे बहुत वरिष्ठ हैं. इसीलिये आपकी राजनैतिक यात्रा वाला कमेन्ट डिलीट कर दिया. लेकिन पते में कौन ठकुरई. आप के कुतर्क भाजपा-कांग्रेस के आपसी दोषारोपण की तरह हैं. अपने भ्रष्ट होने की सफाई देने की बजाय दूसरे के भ्रष्टाचार की तरफ इंगित करना. बहुत खुशी हुई जानकार कि परजीवी राजनेता पुरुशार्थी हैं. १९६२ बौर १९६७ पर बहुत लिखा जा चुका. वैसे भी प्रकाश करात और बुद्धादेब उसी तरह के कम्युनिस्ट हैं, मुलायम और जार्ज जिस तरह के सोसलिस्ट. लेकिन अगर पूंजी के दलाल अपने को सोसलिस्स्त और कम्युनिस्ट काहें तो यह सोसलिज्म और कम्युनिज्म की सैद्धांतिक विजय है. देश बेचने का उपक्रम हम नहीं साम्प्राज्वाद की दलाल पार्टियां भाजपा-कांग्रेस कर रही हैं. देश बेचने का उपक्रम रक्षा और ताबूत के सौदों में दलाली खाने वाले जार्ज जैसे नेता कर रह रहे हैं. देश बेचने के साजिश विश्वबैंक के सेवक मनमोहन जैसे नौकरशाह कर रहे हैं. हल्के फुल्के अंदाज में कहूँ ओ चंचल भाई १८ साल के उम्र में पिताजी से राजनैतिक के चलते आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद के बाद कभी किसी से कोई दान-अनुदान/आर्डर-मनीआर्डर नहीं लिया.२१ साल में खाली हाथ दिल्ली भूमिगत रहने आया था और कभी भी किसी की चवन्नी की चाय का एहसान नहीं लिया. झुकाकर सर जो सर बन जाता मैं नौकरी १५ साल पाहले मिल जाती लेकिन तब मैं मैं न होता. प्रणाम.
Yogesh Abhay Singh: चार्वाक मुनि के बढ़िया संस्करण कौन हैं? वैसे आपकी कुतर्कपूर्ण आधारहीन गलियों का स्वागत है. वह जंग ही क्या वह अमन ही क्या दुश्मन जिसमे ताराज न हो? यदि हुन्दुत्त्ववादी धर्मान्ध; साम्प्रदायिकतावादी युद्धोन्मादी; फासीवादी,नस्लवादी/जातिवादी/क्षेत्रवादी दुर्बुद्धि; एवं हिटलर के विविध किस्म के मानसपुत्र मुझी गालियाँ न दे तो मुझे अपनी निष्ठा पर संदेह होने लगता है. इस पोस्ट पर बाल से जार्ज का ही ज़िक्र है. और रणवीर सेना से शिवसेना के तुलना इसलिए प्रासंगिक है कि दोनों जातीय/न्रिशंसीय आधार पर बनी फासीवादी किस्म की सामाजिक-अपराधी निजी सेनाएं हैं और दोनों के मुखिया ठाकरे और ब्रह्मेश्वर नृशंस किस्म के सामाजिक अपराधी थे और जिनके समर्थकों ने उनके मातम में कोहराम मचाया. प्रासंगिकता यह भी है कि किस किस्म की हम शिक्षा देते हैं कि इतने पढ़े-लिखे लोग इतने खतरनाक इन सामाजिक अपराधियों के प्रति भक्ति-भाव रखते हैं.
जार्ज के अंदर साम्प्रदायिक अवसरवादिता पुरानी है जो अटल के मंत्रिमंडल में मलाईदार मंत्रालय के लिये आरएसएस की गोद में बैठकर मुखरित हुई. ठाकरे जैसे जन्-द्रोही और युद्धोन्मादी साम्प्रदायिक आतातायी की मौत का मातम उसके वैचारिक मानसपुत्र ही मनाये, जैसे रणवीर सेना के मुखिया के मातम में उस अपराधी के मानस पुत्रों ने कोहराम मचा दिया था.
चंचल भाई मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ क्योंकि आप मेरे बहुत वरिष्ठ हैं. इसीलिये आपकी राजनैतिक यात्रा वाला कमेन्ट डिलीट कर दिया. लेकिन पते में कौन ठकुरई. आप के कुतर्क भाजपा-कांग्रेस के आपसी दोषारोपण की तरह हैं. अपने भ्रष्ट होने की सफाई देने की बजाय दूसरे के भ्रष्टाचार की तरफ इंगित करना. बहुत खुशी हुई जानकार कि परजीवी राजनेता पुरुशार्थी हैं. १९६२ बौर १९६७ पर बहुत लिखा जा चुका. वैसे भी प्रकाश करात और बुद्धादेब उसी तरह के कम्युनिस्ट हैं, मुलायम और जार्ज जिस तरह के सोसलिस्ट. लेकिन अगर पूंजी के दलाल अपने को सोसलिस्स्त और कम्युनिस्ट काहें तो यह सोसलिज्म और कम्युनिज्म की सैद्धांतिक विजय है. देश बेचने का उपक्रम हम नहीं साम्प्राज्वाद की दलाल पार्टियां भाजपा-कांग्रेस कर रही हैं. देश बेचने का उपक्रम रक्षा और ताबूत के सौदों में दलाली खाने वाले जार्ज जैसे नेता कर रह रहे हैं. देश बेचने के साजिश विश्वबैंक के सेवक मनमोहन जैसे नौकरशाह कर रहे हैं. हल्के फुल्के अंदाज में कहूँ ओ चंचल भाई १८ साल के उम्र में पिताजी से राजनैतिक के चलते आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद के बाद कभी किसी से कोई दान-अनुदान/आर्डर-मनीआर्डर नहीं लिया.२१ साल में खाली हाथ दिल्ली भूमिगत रहने आया था और कभी भी किसी की चवन्नी की चाय का एहसान नहीं लिया. झुकाकर सर जो सर बन जाता मैं नौकरी १५ साल पाहले मिल जाती लेकिन तब मैं मैं न होता. प्रणाम.
Yogesh Abhay Singh: चार्वाक मुनि के बढ़िया संस्करण कौन हैं? वैसे आपकी कुतर्कपूर्ण आधारहीन गलियों का स्वागत है. वह जंग ही क्या वह अमन ही क्या दुश्मन जिसमे ताराज न हो? यदि हुन्दुत्त्ववादी धर्मान्ध; साम्प्रदायिकतावादी युद्धोन्मादी; फासीवादी,नस्लवादी/जातिवादी/क्षेत्रवादी दुर्बुद्धि; एवं हिटलर के विविध किस्म के मानसपुत्र मुझी गालियाँ न दे तो मुझे अपनी निष्ठा पर संदेह होने लगता है. इस पोस्ट पर बाल से जार्ज का ही ज़िक्र है. और रणवीर सेना से शिवसेना के तुलना इसलिए प्रासंगिक है कि दोनों जातीय/न्रिशंसीय आधार पर बनी फासीवादी किस्म की सामाजिक-अपराधी निजी सेनाएं हैं और दोनों के मुखिया ठाकरे और ब्रह्मेश्वर नृशंस किस्म के सामाजिक अपराधी थे और जिनके समर्थकों ने उनके मातम में कोहराम मचाया. प्रासंगिकता यह भी है कि किस किस्म की हम शिक्षा देते हैं कि इतने पढ़े-लिखे लोग इतने खतरनाक इन सामाजिक अपराधियों के प्रति भक्ति-भाव रखते हैं.
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