Sunday, November 11, 2012

निगाहों की तश्नगी

निगाहों की तश्नगी 
ईश मिश्र 

ढूंढेगी जिसे भी इतने खलूस से निगाहों की तश्नगी
इनमें डूबना हैं अहल-ए-जूनून से इश्क की बंदगी
ये आँखे हैं सघन जज्बातों के उमड़ते हुए समंदर
मिलेगा मोती-ए-ज़िंदगी पैठ गहरे इनके अंदर
(वाह वाह यह तो शायरी हो गयी)


नयनों के अंदाज़ हों गर उमड़ती लहरों के  समंदर से
जी करता है करने को खुदी इसके ज्वार-भाटा के हवाले


होंगे नयना जो सावन-भादों
मन रहेगा उदास
करेगा किसी कृपा की आस
और नहीं बुझेगी प्यास

हो नज़रों में इतने तेज का एहसास
कुंएं को भी हो जाए प्यास का आभास
चल कर खुद-ब-खुद आ जाए पास
बुझाने एक दूजे की नैसर्गिक प्यास

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