Wednesday, November 14, 2012

मुठभेड़ तूफानों से




मुठभेड़ तूफानों से

नभ में चमक रही थी चपला फिर भी नहीं तनिक तूं बिचला
ओलों की बूंदाबादी में उदधि थहाने था जब निकला
(एक पुरानी तुकबंदी से)
जब भी हो मुठभेड़ समंदर में भयानक तूफानों से
फाडकर सीना उनका बढते रहो आज़ादी के दीवानों से
झेले हैं तुमने अब तक तूफानी रात के बाहुत पल
सबा-ओ-सुबह की आमद नहीं सकती टल
हैं अगर हिम्मत-ओ-इरादा  बुलंद-ओ-अटल
पतवार पर ढीली न हो लेकिन कभी पकड़

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