Friday, November 2, 2012

गज़ल

गज़ल
ईश मिश्र 

थे जब तक गज़लगो सबाब-ओ-शराब के पूजारी
माशूक के जल्वों में उलझ गयी थी गज़ल बेचारी
पैदा हुआ एक शायर जिसका नाम था मजाज
बदल दिया उसने गज़लगोई का मिजाज
मुक्त हुई माशूक की उलझी जुल्फ से जब से गज़ल
बन गयी खाक़नशीनों के जंग-ए-आज़ादी का शगल
छोड़ दिया उसने हुस्न के जल्वों के जाली जज्बात
लिखने लगी मुफलिस की जवानी ओ बेवा का सबाब
छोड़ दिया उसने महफ़िल शाहों और प्यादों की
तोड़ने लगी तेग हिटलरों और चंगेजों की
छोड़ सबनम, नीलोफर की करने लगी अंगार की बातें
चूल्हे की उदासी और चक्की के रोने की बातें
खोलने लगी लब जुल्म के मातों की
बन गयी ऐलान इन्किलाबी जज्बातों की
करेगा गर कोई कैद इसे जींद और प्याल्र में
खा जायेगी उसे ज़िंदा एक ही निवाले में
गाती है अब यह जंग-ए-आज़ादी के गीत
होगी एक-न-एक दिन मेहनतकश की जीत
(11.02.2012)

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