कारवानेजुनून
ईश मिश्र
राजपथों पर गुजरते हैं इक्का-दुक्का ही काफिले
चिकने धरातल ऐसे हादसों के गवाह ही नहीं छोड़ते
चलते हैं इनपर वहम-ओ-गुमाँ वाले
डरते है जो अपने ही पैरों के निशान से
छोड़ना चाहते हैं अपनी छाप
अज्म-ए--जुनूं वाले कारवानेजुनून
और चलते है कच्ची पगडंडियों पर
बनाते हुए रास्ता आने वाले राहगीरों के लिए
पहुँचता है कारवाँ जब एक मंजिल पर
दस्तक देती है तेज है हवाएं
दिलाती हैं एहसास अगली मंजिल का
आगे दिखती हैं और भी मंजिलें
दिखते हैं पीछे कारवानेजुनून के कई काफिले.
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