मित्रों, आज आज़ादी के पैंसठवे साल में सामर्ज्य्वादी गुलामी का दूसरा दौर अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है जिसमें कार्पार्पोरेटी लूट की खुली आज़ादी है और जैसे अंग्रेजी फौज के भाड़े के हिन्दुस्तानी सिपाही लूट के मुहरे थे वैसे ही आज हिन्दुस्तानी फौज/पुलिस के सिपाही कारपोरेटों द्वारा लूट के मोहरे हैं. दोनों हालात में फर्क यह है कि अब किसी लार्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है सभी सिराज्जुद्दौला मीर जाफर बन गए हैं. पिछले कई सालों से लाल किले से आज़ादी का झंडा फहराने का कर्मकांड विश्वबैंक के एक ऐसे पेंसंखोर के हाथों होता रहा है जिसके इतिहासबोध और अर्थशास्त्र बोध के अक्षर-अक्षर से जहालत और गुलामी की मानसिकता झलकती है. सर्वविदित है कि माननीय प्रधानमंत्री ने कुछ साल पहले आक्सफोर्ड विश्विद्यालय में मानक उपाधि लेते समय औपनिवेशिक आकाओं का कशीदा पड़ने के साथ आभार भी व्यक्त किया कि उन्होंने आकर हमें विक्सित कर दिया. गौरतलब है कि अंग्रेजी राज के पहले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मतलब होता था भारत और पूर्व, विशेष रूप से चीन से व्यापार. अन्तराष्ट्रीय व्यापार में भारत का हिस्सा एक-तिहाई से अधिक था. अकाल और महामारी किस्से, कहानियों में ही पाए जाते थे. अंग्रेजी राज के दौर की महामारियां इतिहास की बातें हो गईं हैं. १९४७ में जब सत्ता जस-के-तस अंग्रेजी शासकों से हिन्दुस्तानी शासकों के हाथ आयी, यानि कि जब अंग्रेज यहाँ से गए, भारत की अर्त्थ्व्यवस्था में भारतीय रेल समेत सेवा-क्षेत्र सहित कुल औद्योकिक योगदान ६.७% था. यूरोप में सार्वजनिक क्षेत्र का उदय पूंजीवाद को संकट के लिए हुआ हिंदुस्तान में पूंजीवाद के विकास के लिए. कुन आज़ाद हुआ? पूंजीपति और उनके जरखरीद गुलाम.
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