Sunday, August 19, 2012

लल्ला पुराण ३३

मेरे जैसे अदना से व्यक्ति के लिए इतना बवाल उचित नहीं है. शिक्षक काम जब तक बच्चा सीख न जाए सिखाने की कोशिस करते रहना चाहिए, असफलताओं से निराश हुए बिना. मैं पहले ही आग्रह कर चुका हूँ कि विमेश में मेरी सफ़ेद दाढ़ी और दुर्घटनावश प्राप्त पद के चलते कोई रियायत न दी जाए. नैतिकता के मानदण्ड और आचारसंहिता के नियम शिक्षक और वियार्थी के लिए एक से होने चाहिए. मैंने कभी अपनी राजनैतिक पहचान नहीं छिपाया. मैं एक स्वघोषित मार्क्सवादी; प्रामाणिक नास्तिक; और कर्म-वचन से नारीवादी (मर्दवाद विरोधी) हूँ और सामाजिक विज्ञानों में वस्तुपरकता को एक छलावा मानता हूँ. जिनके पास अपने पक्ष में तर्क नहीं होते वे निष्पक्ष होने का ढोंग करते हैं. मैं एक नारीवादी होने के नाते नूतन सिंह के गुस्सा करने और मेरे बारे में अपनी राय जाहिर करने के अधिकार का सम्मान करता हूँ इस आग्रह के साथ कि यह गुस्सा सीखने की बेचैनी बननी चाहिए. ऐसे मौकों पर मुझे फ्रांसीसी नारीवादी चिन्तक, सिमन दी बुआ का डाइलाग याद आता है. उनसे कुछ पत्रकारों ने पूंछा, "When women are happy with the traditional way of life, what is your problem? Why do you want to impose your views on them?" सिमन दी बुआ: "We do not seek to impose anything on any one. They are happy with traditional ways of lie as they do not know the other ways. We just seek to expose them to other ways of lives. And what can you do if someone can learn to derive some amount of power even within the prison?" नूतन सिंह जी मैंने क्लास न लेने वाले शिक्षकों के लोइए हरामखोर शब्द का इस्तेमाल किया था जिसे अनावश्यक समझ संपादित किया था. जो व्यक्ति बिना काम किये मोटी कमाई करे उसे क्या कहा जाता है? अन्य नौकरियों की ही तरह शिक्षकों के चयन मे भी मठाधीशी और जोड़-तोड़ के गणित का वर्चस्व होने के चलते कई लोग सारी प्रतियोगात्मक परीक्षाओं की असफलता के बाद किसी मठाधीश की कृपा से शिक्षक हो जाते हैं.निजी पूंजी के मुनाफे के  लिए एक सार्वजनिक उपक्रम के निदेशक द्वारा सैकड़ों करोड़ की मूर्खतापूर्ण निजी संचय की मिथ्या चेतना में आम जनता के अरबों रूपये का चूना लगाकर एक अतिमहत्वपूर्ण संयंत्र को तबाह करने को कमीनापन ही कहना  मेरी शब्द-सीमाओं का द्योतक है. काश! मैं भाषाविद होता या भाषा ही समृद्ध होती?.

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