इस तरह की बातें सवर्ण असुरक्षा का परिचायक है. आज के अखबार में खबर के अनुसार,यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लेप्रोसी उन्मूलन के लिए प्रदत्त करोडों के घपले के लिए सजा पाने वाले डाक्टर मित्तल और गुप्ता आरक्षण से नहीं आये थे. कई लाख का कोयला खा जाने वाले प्रधान मंत्री और कोयला मंत्री भी आरक्षण से नहीं आये हैं. नाल्को का पूर्व निदेशक कमीना श्रीवास्तव जो नहीं भी पकड़ा जाता तब भी ८० किलो सोना बैंक के लाकर में ही रख कर मर जाता, वह भी आरक्षण से नहीं आया था. देश भर में करोणों की जमीने और घर रखने वाले आईएस जोशी पति-पत्नी भी योग्याता के ही आधार पर ही आये थे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के क्लास न लेने वाले तमाम हरामखोर शिक्षक सवर्ण ही हैं. सिर्फ सुविधाओं के लिए पदासीन, होस्टलों को सराय बनाने वाले वार्डन और सुपरिन्तेंदेंत भी सभी सवर्ण ही हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में पढाने के अलावा सभी धंधे करने वाले ज्यादातर शिक्षक सवर्ण ही हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में जातिवाद फ़ैलाने और नादिरशाही से विश्वविद्यालय को बर्बाद करने वाला भ्रष्ट कुलपति भी सवर्ण ही है. हिन्दू कालेज में ओबीसी एक्सपेंसन फंड से निर्माण के नाम पर दलाली खाने वाले प्रिंसिपल और वार्डन भी सवर्ण ही हैं. वहीं पर तमाम दलित शिक्षक विद्यार्थियों में लोकप्रिय होने के साथ ही कलम का भी कमाल दिखा रहे हैं एवं शिक्षा को व्यापार बनाने की सरकारी नीतियों के विरुद्ध संघर्षों में दलित शिक्षक और विद्यार्थी अगली कतारों में पाए जाते हैं. इस तरह की पोस्ट सवर्ण असुरक्षा और कुंठा से उपजे जातीय उन्माद का द्योतक है.
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