Wednesday, August 15, 2012

शिक्षक

शिक्षक
ईश मिश्र 

यदि शिक्षक हो जाएगा लाचार और निरीह
मिट्टी में मिल जायेगी मुल्क की तकदीर
खोने को पास उसके कुछ भी नहीं है
पाने को सारा आसमां-ओ-जमीं है
मोल ली हैं उसने बेचारगी और लाचारी
चाहे गर मन से तो बदल दे दुनिया सारी
लेकिन उसे तो आदत है देने की अर्जुनों को दीक्षा
बर्दास्त नहीं कर पाता एकलव्यों की शिक्षा
एकलव्यों ने अब पकड़ा रास्ता कबीर का 
मानेगे नहीं बात वे अब किसी पंडे और पीर का
जंग होगा शब्दों का, नहीं धनुष और तीर का
रचेंगे वेद ऐसा जो काम करे शमसीर का
इसलिए ऐ दानिशमंदो! बनाओ एकलव्यों को इतना समझदार
कि बदल दें वे हवा का रुख और नदियों की धार.
आमीन


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