नटों-भांटो से भरी संसद में जनतंत्र का मतलब संख्या तंत्र है. कारपोरेटी मुनाफे के जरिये आर्थिक विकास को सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता कि इससे देश की नामाकूल जनता पर १.८२ लाख करोड़ या १८२ लाख करोड़ रूपये की मार पड़ रही है. विदेशी बैंकों में बेशुमार संपत्ति जमा करने वाले देश की जानी-मानी हस्तियों का नाम बताकर देश को शर्मसार करने की बेईमानी इतने ईमानदार प्रधानमंत्री कैसे कर सकते हैं? फुटकर बाज़ार को भूमण्डलीय पूंजी के हवाले करने से सिर्फ इसलिए रोक दिया जाए कि इससे एकाध करोड़ लोग बेरोजगार हो जायेंगे? खनिजों, जंगलों, जल और जमींन की बेशकीमती संपदा टाटा, पास्को, वेदांता,जिंदल जैसे देशभक्त उद्योगपतियों को न सौंप कर असभ्य आदिवासियों के ही अधिकार को वे मान लें तो देश विकास करके आर्थिक शक्ति कैसे बनेगा? अमरीका जैसा बनने के लिए उसका अनुनय और कुछ वैसा ही इतिहास रचना पड़ेगा? धन्य हैं हम विश्व बैंक के विशवास-पात्र और ईमानदारशिरोमणि प्रधानमंत्री पाकर. बस एक ही बात खटकती है किस पाठशाला से इन्होने अर्थशास्त्र पढ़ा होगा?
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