Monday, August 2, 2021

बेतरतीब 110 (भाई साहब)

 इस कहानी (प्रेमचंद की बड़े भाई साहब) से मैं कुछ अधिक ही एकात्म स्थापित कर पाया था क्योंकि इस कहानी के बड़े भाई साहब की ही तरह मेरे भाई साहब भी मुझसे 5 साल बड़े थे लेकिन कक्षा में 3 साल ही आगे। लेकिन ऐसा उनके बुनवियाद मजबूत करने के चलते नहीं, बल्कि हड़बड़ी में मेरी उछलकूद के चलते था। गणित ( गिनती-पहाड़ा) में अच्छा होने के चलते गदहिया गोल ( प्रीप्राइमरी [अलिफ])से कक्षा एक में तथा डिप्टी साहब (एसडीआई) के मुआयने के दौरान अंकगणित के ही एक मौखिक सवाल के जवाब में कक्षा 4 से 5 में प्रोन्नति पा गया था। दरअसल कक्षा 4 और 5 के बच्चे एक ही कमरे में बैठते थे, सवाल कक्षा 5 वालों से पूछा गया था, कोई नहीं बता पाया तो मैंने हाथ खड़ा कर दिया। यह 1963-64 की बात है। वैसे अब सोचता हूं कि हर काम समय पर ही करना चाहिए, आगे-पीछे नहीं। लेकिन बचपन से ही समय से आगे रहने की प्रवृत्ति थी। कम उम्र में प्राइमरी पास कर लेने के चलते हाई स्कूल की परीक्षा की न्यूनतम आयुसीमा की पूर्ति के लिए उम्र बढ़ाकर लिखानी पड़ी, परिणास्वरूप जल्दी रिटायर हो गए डेढ़ साल के पढ़ाने के सुख से वंचित।


कालजयी रचनाकार की स्मृति को कोटिक नमन।

No comments:

Post a Comment