अतिशयोक्ति अलंकार की कोटि है, 2 लाख बार तो नहीं, कई बार यह स्वाकारोक्ति कर चुका हूं कि पहनने का कोई तर्क नहीं समझ आने से, फालतू समझ 13 साल की उम्र में जनेऊ से मुक्ति पा लिया। मेरी इस बात से किसी के आहत होने का कारण समझ नहीं आता कोई अनायास आहत हो तो घाव पर विवेक का मरहम लगा ले। मुझे रक्षाबंधन से कोई समस्या नहीं है, करवाचौथ को एक मर्दवादी पर्व मानता हूं जोकि मेरी निजी राय है। पतियों के लिए पत्नियों के उपवास के पर्व को मर्दवादी कहने से मर्दवादी सोच वालों की सोच आहत आहत होना की परवाह नहीं करना चाहिए। किसी महाकाव्य के नायक द्वारा पत्नी के अपहरण की सजा में उसी की अग्नि परीक्षा लेना और उसके बावजूद गर्भवती अवस्था में किसी बहाने घर-देश से निकाल देना निश्चित ही मर्दवादी कृत्य है। महिषासुर की समीक्षा मैंने किया है तथा उसके कुछ (कम-से-कम एक) लेखकों को निजी रूप से जानने की बात आप खुद बता चुके हैं। भारत में ही नहीं दुनिया भर में बहुत से सरकारी भोपुओं को बहुत दिनों से वाम का दौरा पड़ता रहा है। एक तरफ वे वाम का मर्शिया पढ़ते हैं दूसरी तरफ दौरे के शिकार होते हैं।
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