Wednesday, August 18, 2021

लल्ला पुराण 396 (द्विराष्ट्र सिद्धांत)

 Arvind Rai द्विराष्ट्र परियोजना, 1857 की ससस्त्र किसान-क्रांति से बौखलाए औपनिवेशिक शासकों की बांटो-राज करो नाति का उपपरिणाम थी, जिसे कार्य रूप देने के लिए उसके देसी दलाल -- मुस्लिम लीग और हिंदू महा सभा मुल्क में फिरकापरस्ती नफरत फैलाना और अपने अंग्रेज आकाओं की शह पर दंगे करवाना शुरू किया। औपचारिक रूप से सबसे पहले सावरकर की अध्यक्षता में हिंदू महा सभा ने द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रस्ताव पारित किय.ा तथा उसके कुछ साल बाद मुस्लिम लीग ने। ऐतिहासिक विकास क्रम के विरुद्ध सावरकर की स्पष्ट राय थी कि हिंदू और मुसलमान अलग अलग राष्ट्र हैं। अगर ऐसा होता तो बांगलादेश क्यों-कैसे बनता। औपनिवेशिक वफादारी के पुस्कार स्वरूप सावरकर को पेंसन मिलीू और जिन्ना को पाकिस्तान की सदारत।


https://www.firstpost.com/india/vd-savarkar-was-no-proponent-of-two-nation-theory-his-writings-on-hindu-muslim-relations-only-constitute-statement-of-fact-7770871.html

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