'मार्क्सवाद की विचारधारा से प्रभावित कांग्रेसजन' द्वारा 1934 में कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी का गठन गांधी के आशिर्वाद से नहीं उनकी इच्छा के विरुद्ध हुआ था। 1928 में कॉमिन्टर्न की 6ठी कांग्रेस के प्रतिगामी प्रस्तावों के तहत तब तक कांग्रेस से सहयोग करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय आंदोलन के अलग-थलग हो गयी तथा प्रतिबंधित थी। नवगठित सीएसपी के अध्यक्ष तथा महमंत्री आचार्य नरेंद्रदेव और जेपी के नेतृत्व में कम्युनिस्ट भी सीएसपी में शामिल हुए। नंबूदरीपाद पार्टी के संस्थापर सह लचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) थे। अशोक मेहता, मीनू मसानी, लोहिया जैसे कुछ कम्युनिस्ट विरोधी जरूर टॉर्च-खुरपी लेकर पार्टी में कम्युनिस्ट कांस्पिरेसी खोजते रहते थे। यूरोप में नवजागरण एवं प्रबोधन क्रांतियों ने जन्मगत भेभाव खत्म कर दिया था लेकिन भारत में ऐसे आंदोलन नहीं हुए तथा जन्मगत (जातीय) भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष भी कम्युनिस्टों की अतिरिक्त जिम्मेदारी थी, जिसे उन्होंने अनदेखा किया, परिणाम स्वरूप जातिवादी भेदभाव के खिलाफ जवाबी जातिवाद शुरू हो गया जो वर्गसंघर्ष के रास्ते का उतना ही बड़ा गतिरोधक है, जितना जातिवाद।
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