Monday, August 16, 2021

बेतरतीब 110(बच्चे और दंड)

 3 साल पुरानी एक पोस्ट, शेयर करने काविकल्पनहीं दिखा, इसलिए कॉपी-पेस्ट:


27 सितंबर 2016

मित्रों, एक सज्जन ने इस मंच पर एकाधिक बार एक पोस्ट इस मंतव्य का पोस्ट किया कि बच्चे लाड़-दुलार से उद्दंड हो जाते हैं, उन्हें मार-पीट कर; प्रताड़ित करके; दंडित करके उनमें गुणों का विकास करना चाहिए. इस तरह के लोग लगता है बचपन में मार खा खा कर खुद बंद-बुद्धि लतखोर हो जाते हैं और अपने बच्चों को भी खुद सा लतखोर बनाना चाहते हैं, इस तरह के बाल-अत्याचार के अपराधी अभिभावकों तथा शिक्षकों की सार्वजनिक आलोचना होनी चाहिए.

मैंने जवाब में लिखा था कि मैं न तो कभी घर में मार खाया न स्कूल में, तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया! जरा अतीतावलोकन कीजिए और सोचिए जिन मां-बापों ने अपने बच्चों को दंडित करके गुणी बनाने की कोशिस की उनमें से कितने विद्वान बने? बचपन में विद्रोही तेवर के बावजूद "अच्छे" बच्चे की छवि थी. 9 सगे और कई चचेरे भाई-बहनों में लाड़-प्यार कितना मिला पता नहीं, लेकिन मार कभी नहीं खाया. एक बार (5-6 साल की उम्र में) पिताजी ने 1 रूपया खोने के लिए एक चांटा मारा तो दादी ने पलटकर एक उन्हें वापस दिया और पान खा रहे थे बाहर आ गया, हिसाब बराबर हो गया. पढ़ने-लिखने में तेज था, होम वर्क इसलिए पूरा कर लेता था कि टीचर क्लास में खड़ा न कर दे. 9 साल में प्राइमरी पास कर लिया सबसे नजदीक मिडिल स्कूल 7-8 किमी था. 12 साल में मिडिल पास किया, पैदल की दूरी पर हाई स्कूल नहीं था, साइकिल पर पैर नहीं पहुंचता था, सो शहर चल दिया और तबसे सारे फैसले खुद करने लगा. इलाहाबाद विवि में साल बीतते-बीतते क्रांतिकारी राजनीति में शिरकत के चलते आईएस/पीसीयस की तैयारी से इंकार करने के चलते पिताजी से आर्थिक संबंध विच्छेद कर लिया और अपनी शर्तों पर जीते हुए कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब इकसठिया गया हूं. इंटर में एक कमीन टीचर ने मारने के लिए छड़ी उठाया, मैंने पकड़ लिया कि बताओ क्यों मारोगे? उसने केमिस्ट्री प्रैक्टिकल में फेल करने की कोशिस की लेकिन लगता है एक्सटर्नल नहीं माना और 30 में 10 नंबर देकर पास कर दिया, तब भी टॉपर से 19 नंबर ही कम आए.

13 साल में जनेऊ तोड़ दिया, कर्मकांडी दादा जी हर बार घर आने पर मंत्र-संत्र के साथ फिर से जनेऊ पहना देते थे, लेकिन कभी हाथ नहीं उठाया, अंत में ऊबकर छोड़ दिया. भूत का डर तभी खत्म हो गया, 17 की उम्र तक नास्तिक हो गया, काल्पनिक भगवान का भी काल्पनिक भय खत्म हो गया. 2 बेटियों का फक्रमंद बाप हूं, दोनों ही मेरी ज़िगरी दोस्त हैं. ज्यादातर मां-बाप अभागे दयनीय जीव होते हैं, समता के अद्भुत सुख से अपरिचित, बच्चों से मित्रता नहीं करते और शक्ति के वहम-ओ-गुमां में जीते हैं.

बच्चे कुशाग्रबुद्धि, सूक्ष्म पर्यवेक्षक तथा चालू और नकलची होते हैं, मां-बाप को प्रवचन से नहीं दृष्टांत से उन्हें पालना होता है. मैं आवारा आदमी जब बाप बना तो सोचा अच्छा बाप कैसे बना जाय. 1. बच्चों के साथ समतापूर्ण जनतांत्रिक तथा पारदर्शी व्यवहार करें. 2. उन्हे अतिरिक्त ध्यान; अतितिरिक्त संरक्षण एवं अतिरिक्त अपेक्षा से प्रताड़ित न करें. 3. बच्चों के अधिकार तथा बुद्धिमत्ता का सम्मान करना सीखें. 4. बच्चों की विद्रोही प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दें, विद्रोह में सर्जनात्मकता है. To rebel is to create. मार-पीट कर जो बच्चों को पालते हैं वे बच्चों के साथ अक्षम्य अमानवीय अपराध करते हैं तथा अपने बच्चों को भी खुद सा लतखोर गधा बना देते हैं. मेरी बेटियां नियंत्रण और अनुशासन की बेहूदगियों से स्वतंत्र पली-बढ़ी हैं तथा अपने अपने क्षेत्रों में, परिजनों में प्रशंसित होती हैं. लोग कहते हैं भगत सिंह पड़ोसी के घर पैदा हों, मुझे गर्व है कि दोनों भगत सिंह की उनुयायी हैं.

आप सबसे अनुरोध है कि अपने अहं और अज्ञान में बच्चों को दब्बू और डरपोक न बनाएं, उनके अंदर की विद्रोही प्रवृत्तियों को कुंद न करके उन्हें प्रोत्साहित और परिमार्जित करें. विद्रोही प्रवृत्ति में सर्जक-अन्वेशी संभावनाएं अंतर्निहित होती हैं. यदि किसी की बापाना भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो उनका इलाज कराएं.

ईमि — with Markandey Pandey and 21 others.

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