प्लेटो अपने शिक्षा सिद्धांत में कहता है कि शिक्षक का काम बच्चे के दिमाग में कुछ ऊपर से डालना नहीं बल्कि दिमागलकी आंखों के समक्ष वस्तुओं को दृष्टिगोचर बनाना यानि एक्सपोजरलप्रदान करना है। लेकिन तुरंत ब्रेनवाशिंग का सख्त टाइमटेबुल और पाठ्यक्रम प्रस्तुत कर देता है। कहता है कि बच्चे की शिक्षा पैदा होते ही शुरू होनी चाहिए क्योंकि बच्चा मोम कीनतरह होता है, उसे जैसा चाहो रूपवदे सकते हो। तीन चरणों में विभाजित लंबी प्रथमिक शिक्षा में केवल व्यायम-खेलकूद और संगीत (गाना-बजाना) है। बच्चे के चिंतन की दिशा और दशा नियंत्रित करने के बाद उनमें वर्णाश्रम के पैटर्न पर, शिक्षा द्वारा निर्धारित वर्ग विभाजन संचारित करना है। बुद्धिजीवी (दार्शनिक) -- शासक; साहस का धनी -- सैनिक तथा बाकी आर्थिक उत्पादक। वर्णाश्रम में ब्रह्मा के नाम से मिथक रचा गया तो प्लेटो धातुओं के मिथक (राजसी झूठ) की कहानी गढ़ता है कि निम्न वर्गों को वर्गविभाजन के औचित्य पर राजी करने के लिए दार्शनिक राजा को इस झूठ का प्रचार करना चाहिए कि ईश्वर ने लोगों को विभिन्न धातुओं के गुणोंके साथ बनाया है जिसके अनुसार उनकी सामाजिक-राजनैतिक भूमिका का निर्धारण होता है। दार्शनिक (राजा) में सोने के गुण होता है, साहसी (सैनिक) में चांदी का तथा आर्थिक उत्पादकों में तांबे-जस्ते जैसे निम्न कोटि के धातुओं का। ब्रह्मा की रचना की तरह ईश्वर का यह विधान अपरिवर्तनीय है। आरएसएस की शिशुमंदिर तथा शाखा व्यवस्था प्लेटो की शिक्षा पद्धति का अनुकरण है -- शिशु स्वयं सेवक, बाल स्वयंसेवक, किशोर स्वयंसेवक और फिर स्वयंसेवक। 18 साल तक की प्राथमिक शिक्षा (शिशु से किशोर तक) में व्यक्ति व्यायाम, ड्रिल, गीत और बौद्धिकों के माध्यम से इतिहास तथा नैतिकता और राष्ट्रवाद की अफवाहजन्य विकृत मान्यताओं (मिथ्या चेतना) को अंतिम सत्य की भांति इस हद तक आत्मसात कर लेता है कि मोहभंग लगभग असंभव हो जाता है। मैं 12-13 साल में खो ऐऔर कबड्डी खेलने के चक्कर में किसी सीनियर के फुसलावे में (अनियमित ही सही) शाखा जाना शुरू किया और नास्तिक होने के बावजूद भी 17-18 साल की उम्र तक कट्टर 'राष्ट्रवादी' बना रहा। इवि में बीएस्सी करते हुए एबीवीपी की इलाहाबाद की जिला इकाई में प्रकाशन मंत्री था। किताबों (और कुछ संवादों) के माध्यम से मार्क्सवाद से प्रभावित होने पर ही राष्ट्रवाद की संघी (मिथ्या) चेतना से मुक्त हो सका। मीणा जी को इससे मुक्त होने लगभग सारा जीवन लग गया। कोई भूछता है तो कहता हूं कि उस समय मैं धार्मिक नहीं था, सांप्रदायिक था। सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं, औपनिवेशिक पूंजी की कोखसे निकली आधुनिक राजनैतिक विचारधारा है।
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