Friday, January 15, 2021

मार्क्सवाद 234 (वामपंथ)

 मित्र, बिल्कुल सही कह रहे हैं, यथास्थिति के विपरीत परिवर्तन की विचारधारा के रूप में तो वामपंथ का अस्तित्व अनादिकाल से रहा है लेकिन ऐतिहासिक अवधारणा के रूप में यह परिभाषित हुआ 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के वक्त, मार्क्स के जन्म से लगभग 2 दशक पहले। समतामूलक, सामूहिकतावादी विचारों के बावजूद यह सामंतवाद के विरुद्ध पूंजीवादी संक्रमण की क्रांति थी, समानता, स्वतंत्रता तथा भाईचारे का नारा नवोदित पूंजीवादी (तब मध्य) वर्ग के लिए था। सर्वहारा की अवधारणा, पूंजीवाद की ही तरह भ्रूणावस्था में थी जिसे पहली व्यावहारिक अभिव्यक्ति मिली फ्रांस की अगली, 1848 की क्रांति में। क्रांति निरंतर प्रतिक्रिया है, प्रतिक्रांति भी। अभी तक की क्रांतियां अल्पसंख्यक वर्ग की क्रांतियां रही हैं, सर्वहारा क्रांति ही बहुसंख्यक वर्ग की, मानव मुक्ति की क्रांति होगी। 1789 की क्रांति के बाद क्रांतिकारियों के पास गणतात्रिक, राजनैतिक पुनर्निर्माण का कोई मॉडल नही था। प्राचीन उत्तरवैदिक गणतंत्र और एथेंस का प्रत्यक्ष जनतंत्र छोटे-ठोटे समुदायों के लिए थे। रॉब्स पियरे के नेतृत्व में नया शासन नया काम करना चाहता था, पारंपरिक सोच बदले बिना परंपराओं को तोड़ते हुए जो उचित समझता था उसे बलपूर्वक लागू करना शुरू किया तथा सामूहिक नेतृत्व की जगह डायरेक्टरेट व्यवस्था ने ले ली। रूसो की अमूर्त, नैतिक शासनिक इकाई, सामान्य इच्छा (जनरल विल) के अलावा कोई सैद्धांतिक मॉडल भी नहीं था। 1797 में नेपोलियन ने हेराफेरी से डायरेक्टरेट से सत्ता अपने हाथों में हथिया लिया तथा विश्वविजय की युद्धोंमादी राष्ट्रवाद की भावना पैदाकर खुद को सम्राट घोषित कर दिया। क्रांति की बिखरी चिंगारियां फिर अंगार बनने लगीं जिसकी परिणति 1848 की क्रांति में हुई जिसमें 1849 में बहुमत की हेरा फेरी से सत्ता लुई बोनापार्ट ने हथियाकर 1851 में संसद को भंग कर खुद को राजा घोषित कर दिया, जिसका अंत 1871 में पेरिस कम्यून के उत्थान-पतन के साथ हुआ। (जारी) विस्तृत वर्णन मैंने 'समयांतर' में 'समाज का इतिहास' शीर्षक की 9 लेखों की लेखमाला (मार्च -नवंबर 2017) के पहले दो भागों में किया है।

16.01.2020

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