मैं अक्सर किसी पोस्ट पर कमेंट को पोस्ट के रूप में पोस्ट कर देता हूं। यह पोस्ट किसी अन्य पोस्ट पर ब्राह्मणों को गाली देकर ज्ञानी बनने के आरोप के एक कमेंट का जवाब था। मनु संभव है क्षत्रिय रहे हों, वैसे मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राह्मण भी राजा होने लगे थे। कोई भी व्यवस्था और उसकी विचारधारा उसके बुद्धिजीवियों के नाम से जानी जाती है। इसीलिए वर्णाश्रमवाद या मनुवाद को ब्राह्मणवाद भी कहा जाता है। इसलिए अब प्रायः वर्णाश्रमवाद या मनुवाद शब्द का इस्तेमाल करता हूं। ब्राह्मणवाद या वर्णाश्रमवाद के पाखंडों का खंडन करने वाले भी प्रायः ब्राह्मण ही थे चाहे प्राचीन काल में महर्षि चारवाक हों या आधुनिक काल में राहुल सांकृत्यायन। बुद्ध के शुरुआती साथी भी ब्राह्मण ही थे। पहले जब कोई पूछता था कि इतने कम्युनिस्ट नेता ब्राह्मण क्यों हैं? तो कहता था कि इतिहास की समग्रता में वैज्ञानिक समझ वही हासिल कर सकते हैं जिन्हें बौद्धिक संसाधनों की सुलभता हो। फेसबुक पर भी सांप्रदायिक कठमुल्लेपन का विरोध करने वालों में मिश्रा-तिवारियों की संख्या कम नहीं है।
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