बिल्कुल सही कह रहे हैं, कोई भी ग्रंथ निरुद्देश्य नहीं रचा जाता। बौद्ध क्रांति के विरुद्ध ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति की दार्शनिक पुष्टि के लिए ही पौराणिक ग्रंथों की रचना हुई। रामायण की रचना पितृसत्तामक वर्णाश्रमी आदर्श की पुनरस्थापना के लिए हुई और इसीलिए उसके पात्र उन्ही मूल्यों के आदर्श के वाहक हैं। बिना दिमाग के इस्तेमाल किए, अच्छे-बुरे का विचार किए बिना पिता की कुतार्किक-जनविरोधी आज्ञा का पालन करने वाले ऐसे आज्ञाकारी पुत्र का आदर्श गढ़ा गया जो पिता के बुरे-से-बुरे आदेश का रोबो की तरह पालन करे। ऐसी ही आज्ञाकारिता में परसुराम ने जन्मदेने वाली अपनी माता की निर्म हत्या कर दी थी। राम का वन गमन स्त्री का पुरुष पर अत्याचार नहीं बल्कि भाइयों के बीच सत्ता संघर्ष का परिणाम है। कई पत्नियों के पति एक ऐयाश राजा द्वारा ने अपनी युवा पत्नी को अनडेटेड ब्लैंक चेक सा वरदान दे रखा था जिसका उसने अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाने के निमित्त चकुराई से इस्तेमाल किया। यदि सीता राम के साथ वन न जाकर मिथिला चली जातीं तो पति का अंध अनुशरण करने वाली पतिव्रता का आदर्श कैसे बनतीं? लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को लेखक ने पतिव्रतत्व के आदर्श के अनूठेपन के लिए बन नहीं भेजा। युद्धोपरांत धोखे से रावण की हत्या करने के बाद वाल्मीकि के राम सीता से विभीषण, हनुमान किसी के साथ भी जाने को कहते हैं क्योंकि युद्ध उन्होंने उन्होंने एक स्त्री के लिए नहीं रघुकुल की आन के लिए लड़ा। 14 साल राम जंगल में क्या करते रहे इस पर कोई सवाल नहीं, आग पर चलकर सीता को ही अपनी पवित्रतता साबित करना पड़ी। आज भी समाज बलात्कारी को नहीं बलत्कृत को शर्मसार करता है। अग्नि परीक्षा के बाद भी अपने अपहरण का सीता का अपराध कम नहीं हुआ किसी धोबी को लोकमत का प्रतिनिधि मान गर्भवती करके उनको राज्य से बहिष्कृत कर दिया। वह धोबी उसी तरह लोकमत का प्रतिनिधि बन गया जैसे तमाम ऐरे-ृगैरे राष्ट्र का प्रतिनिधि बन सरकार के आलोचकों को पाकिस्तान भेजने लगते हैं। सांस्कृतिक चित्रों का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन विरासत में मिले सांस्कृतिक वर्चस्व से मुक्त होकर ही किया जा सकता है। हम विरासती सांस्कृतिक मूल्यों को अंतिम सत्य मानकर व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के सूप में आत्मसात कर लेते हैं, जिनसे मुक्ति के लिए स्वविवेक में अडिग विश्वास तथा अदम्य साहस के साथ निरंतर आत्मसंघर्ष की जरूरत होती है। सादर। आज की सीता ने पकिव्रता का आभूषण त्याग कर प्रज्ञा का शस्त्र उठा लिया है। सादर।
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