Thursday, January 28, 2021

मार्क्सवाद 241 (किसान आंदोलन)

एक पत्रकार मित्र ने कहा कि वे गरीब किसानों के हिमायती हैं लेकिन यह आंदोलन सरकारी नीतियों का फायदा उठाकर रासायनिक खादों से देश को विषाक्त अनाज परोसने वाले कारों में घूमने वाले अमीर किसानों का आंदोलन है, इस लिए वे किसानों की आमदनी दुगुनी करने वाले नए कानूनों के समर्थक तथा अमीर किसानों के आंदोलन के विरोधी हैं। उस पर

आपने पहले ही कह दिया कि न तो आपको अर्थशास्त्र का ज्ञान है न ही कृषि का लेकिन सरकार की नीतियों के समर्थन में पिछले 2 महीने से किसानों के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे हैं। नीमहकीमी मरीज की जान के लिए कतरनाक होती है। यूपी, बिहार के किसानों को बिजली न मिलने या उनकी गरीबी का कारण पंजाब के किसान हैं क्या? गलत नीतियों के लिए सरकार जिम्मेदारल हैं या किसान? सरकारी भोंपू की तरह चिल्ला रहे हैं कि सरकार किसानों की आय दुगुना करना चाह रही है और किसान इतने आत्मघाती हैं कि अपनी आय घटाना चाह रहे हैं? सरकार तो पिछले 7 सालों से गरीबी त्म करना चाह रही है, प्रानमंत्री ने सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर हर नागरिक के खाते में 15 लाख का वायदा किया था, हर साल करोड़ों रोजगार का वायदा किया था, गरीबी खत्म करने का वायदा किया था, गरीब ही कत्म होते जा रहे हैं। रोजगार की बजाय बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। हजारों पत्रकारों की छटनी हुई है। आप जैसे भाग्यशाली लोग हैं जिनकी नौकरी बची हुई है। आप विशेज्ञ विचार देने के पहले एक बार कृषि विशेषज्ञों की राय पढ़ लेते, कृषि कानूनों और विश्व बैंक का एजेंडा पढ़ लेते या जिन देशों में किसानों को उजाड़ कर खेती का कॉरपोरेटीकरण हुआ है वहां के कृषि मजदूरों के हालात का अध्ययन कर लिए होते तो जानते कि जिन छोटे किसानों तथा खेत मजदूरों के हिमायती बन, सरकारी मृदंग मीडिया सा काम कर रहे हैं, इन कानूनों से सबसे अिक तबाही उन्हीं की होगी। इन कानूनों से किसानों की ही नहीं, अन्न खाने वाले उपभोक्ता की भी तबाही होगी क्योंकि इनसे धनपशुओं को अनाज की जमाखोरी तथा मनमानी दाम वसूलने की आजादी मिल जाएगी तथा आम लोगों की बदहाली की कीमत पर अंबानी-अडानी जैसे क्रोनी धनपशुओं की तिजोरियों में बाढ़ आएगी जिसका बड़ा हिस्सा मृत पूंजी के रूप में सरकुलेसन से बाहर रहेगा या विदेशी बैंकों में साम्राज्यवादी पूंजी की शान बनेगा। सादर। कृपया एक बार इन कानूनों की अंतर्निहित विध्वंसक बारीकियों को पढ़ लीजिए या इस कानून के पूर्वज 1791 के पनिवेशिक भूमि कानून को पढ़ लीजिए जिसके बाद भारत में किसानों की तबाही और महामारियों के दौर शुरू हुए। आपकी नीयत पर संदेह नहीं है आपकी मंशा निश्चित ही गरीब किसानों की हिमायत की होगी लोकिन जाने-अनजाने आप देशी-विदेशी धनपशुों के हित में उनकी तबाही करने वाली सरकारी नीतियों के प्रवक्ता बन रहे हैं। आइए समय रहते मिथ्या चेतना से मुक्त होकर अपनी मंशा को अंजाम देने की पहल करें। देर हुई तो ईस्टइंडिया कंपनी के समर्थकों के वंशजों की तरह कई पीढ़ियों तक हमारे वंशज हाथ मलते रह जाएंगे।

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