Avnish Pandey मैं कतई विचलित नहीं हूं, न कभी चुनाव लड़ा न शिकस्त खाई, न ही चुनाव से क्रांति होगी। संसदीय जनतंत्र पूंजीवादी जनतंत्र है जिसमें हर 5 साल में हम चुनते हैं कि शासक वर्ग का कौन एजेंट अगले 5 साल हमारा दमन करेगा। इसके पहले आपके सवाल के जवाब में लिख चुका हूं कि पूंजीवाद से समाजवाद का संक्रमण गुणात्मक रूपसे भिन्न संक्रमण है जो इतना आसान नहीं है। भारत में सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में अन्य जगहों की समान्य बाधाओं के अलावा जातिवादी मिथ्या चेतना (ब्राह्मणवाद) बड़ी बाधा है, लेकिन हर अस्तित्ववान का अंत निश्चित है, जातिवाद या पूंजीवाद अपवाद नहीं है। इतनी तवज्जो देने का आभार। हर रहर महादेव दंगाई नारा है, इंकलाब जिंदाबाद का नारा इस दंगाई अधोगामी, ब्राह्मणवादी नारे का विनाश करेगा। नमस्कार।
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