Sunday, May 19, 2019

लल्ला पुराण 218 ( एक्जिट पोल)

जनता के विवेक पर सवाल उठता ही है, विपक्ष भी विवेकहीन है। वैसे भी पक्ष-विपक्ष की आर्थिक अंतर्दृष्टि में खास फर्क नहीं है। जनता का विवेक ही है कि मुल्क इतने दिन गुलाम रहा। अर्थव्यवस्था गर्त में चली जाएगी। जनता राम, पाकिस्तान, हिंदू-मुसलमान में फंसी रहेगी, बेरोजगारी और अर्धबेरोजगारी (संविदा-नौकरियां) बढ़ती जाएगी। लोगों की क्रयशक्ति क्षीण होगी, मंदी की हालत 1930 की महामंदी सी होगी। महामंदी के संकट को कल्याणकारी राज्य से निपटा गया लेकिन अभी तो कल्याणकारी राज्य को निपटाकर नवउदारवाद लाया गया। इस संकट का हल दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। जो पत्रकार कल्याणकारी नीतियों के तहत 6 घंटे की नौकरी करता था तथा बुढ़ापा पंसन से कट जाता था आज वह ठेके का गुलाम है तथा मालिक की जीहुजूरी को मजबूर। 2004 में अटल जी जाते जाते पेसन खतम कर सरकारी कर्मचारियों का बुढ़ापा लाचार कर गए उनके मौसेरों ने वही नीति जारी रखा। पिछले 5 सालों में 2 करोड़ के आसपास नौकरियां खत्म हुईं, 15 लाख अकेले आईटी सेक्टर में। डेढ़ लाख से ज्यादा तनखाह वाले 2 साल से बेरोजगार कुछ मेरे ऐसे परिचित हैं। देश की हालत का असर सिर्फ तर्कशीलों पर नहीं भक्तों पर भी पड़ेगा, बेरोजगारी उनके बच्चे भी झेलेंगे। अपन तो पुरानी पेंसन योजना में हैं, बची जिंदगी कट जाएगी, अगली पीढ़ियों का क्या होगा? मेरा खौफ निजी नहीं लमाज का है।

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